मक्का की फसल भारत में बहुत महत्वपुर्ण फसल में से एक हैं। इसका फसल किसानों को बहुत लाभ देती हैं। ये एक फसल के रूप में बोई जाती हैं। साथ किसान इसे किसी दूसरी फसल के साथ भी उगाकर लाभ कमा सकते हैं। मक्का में काई पोषक तत्व पाए जाते हैं। ये सहेत के लिए भी बहुत लाभकारी होती हैं। इसलिए दिन प्रतिदिन इसकी मांग बाजारों बड़ी हैं।
भारत में मक्का की फसल का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता हैं। इसका उत्पादन तीसरे नबंर पर आता है। किसान मक्का की फसल की बोवनी ज्यादा से ज्यादा करते है मक्का की फसल का उत्पान भी बहुत अच्छा होता है मक्का की फसल ऊंचे दामों पर बिकती है और मुनाफा भी अधिक होता है।
भारत में मक्का का उपयोग कर मकई की रोटी बनाई जाती है मक्के की फूली लोग काफी शोक से खाते है। मक्के के कोर्न वरगर आदि में भी इस्तेमाल होता है। मकई में फैट, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फाइबर के साथ कई जरूरी विटामिन और मिनरल्स मौजूद होते हैं। जिसकी मदद से यह शरीर में विभिन्न पोषक तत्वों की पूर्ति करने में सक्षम होता है। साथ ही यह त्वचा, बाल और स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं में भी जरूरी मदद पहुंचाने का काम करता है। यह सहेत के लिए बहुत फयदे मंद होता हैं।
मक्का आयरन का एक अच्छा प्राकृतिक स्रोत है जो रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद कर सकता है। इस प्रकार, यह एनीमिया को प्रबंधित करने में मदद कर सकता है। इसमें फोलिक एसिड और नियासिन भी होते हैं, जो रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं।
मक्के के पौधे की लंबाई 10 फीट की होती है। कुछ पौधों की लंबाई प्राकृतिक रूप से 43 फीट तक की हो सकती हैं। इसका तना बहुत मोटा और गोलाकार होता है। मक्का की जड़ें रेशेदार सफेद रंग की होती हैं, जो मिट्टी में गहराई तक फैलती हैं। पत्ते लंबे और धारीदार होते हैं। मक्के के पौधे में नर और मादा दो तरह के फूल लगते है। नर फूल एक गुच्छे में तने के ऊपरी भाग पर निकलते है वहीं मादा फूल कली के रूप में फूलते है।
मक्का के बीज भूट्टे के रूप में विकसीत होते है ये भूट्टे पर मोती की तरह लाईन से जमें होते है मक्के के दाने गोलाकार चप्पटे होते है, इनका कलर कई किस्म का होता है नारंगी, पीले, सफेद, बैंगनी, लाल कलर में पाए जाती है।
मक्का की खेती के लिए जलवायु
मक्के के पौधे ठंडी में नही पनपते है, इसलिए मक्के की फसल मानसून आने से ठीक पहले बोई जाती है। मक्का खरीफ की फसल है। इसमें लगभग 70 मिमी वर्षा की जरूरत होती है। मक्का उत्पादन के लिए धूप और वर्षा दोनो की पर्याप्त मात्रा में आवश्यकता होती है। मक्का की फसल के लिए 35 डीग्री तक तापमान उपयुक्त होता है।
मक्का उत्पादन के लिए मौसम
क्योकि मक्का को कुछ समय की अच्छी धूप के बाद अच्छी मात्रा में वर्षा की आवश्यकता होती है, मक्का की फसल की सही बुवाई का समय आमतौर पर जून और जुलाई के महीनों के दौरान की जाती है। मक्का की फसल को जनवरी- फरवरी और सितंबर – अक्टूबर के महीनों में बुवाई फसल के लिए उपयुक्त समय होता है इस समय में इसके पौधे अच्छे से विकसीत होते है। बीज उत्पादन के मामले में, बीज की परिपक्वता अवधि को मानसून के साथ मेल नहीं खाना चाहिए। इसलिए किसान बीज उत्पादन के लिए नवंबर और दिसंबर के महीनों में चुऩते हैं।
मक्का के उत्पादन के लिए उपयुक्त मिट्टी
मक्का की खेती के लिए 5.5 से 7.0 की पीएच और एक अच्छी जल निकासी क्षमता वाली मिट्टी मक्का की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। मक्का के लिए बलुई बालू, काली मिट्टी और दोमट मट्टी उपयुक्त है। लाल मिट्टी और जलोढ़ दोनों को मक्का उगाने के लिए ज्यादा बेहतर कहा जाता है। हालांकि, सुपर-उपजाऊ मिट्टी में भी इसे अच्छी मात्रा में कार्बनिक पदार्थों की जरूरत होती है। काली मिट्टी काफी ठोस होती है इसलिए काली मिट्टी में ज्यादा मात्रा में रेत मिलाने की सलाह दी जाती है ताकि मिट्टी में जल निकासी क्षमता को बढय़ा जा सके। मक्के की खेती के लिए जिस मिट्टी में पानी रूकता है उसे उपयुक्त नहीं माना जाता।
मक्का की फसल के साथ फसल रोटेशन
मक्का की खेती अन्य फसलो के साथ की जाती है। मक्का को एक वर्ष में एक ही फसल या एक ही वर्ष में 2-3 फसलें भी ली जा सकती है। मक्का की फसलों की छोटी और लंबी दोनों प्रकार की किस्में होती है। किसान मक्का को मिश्रित फसल के रूप में लगाते है। ऐसी फसलें जो कम लंबाई की होती है। मक्का के लंबे पौधों के बीच उगाई जा सकती हैं। जब मक्के की कम समय की किस्म की फसल बोवई जाती है, तो इसे आम तौर पर मिर्च, प्याज, आलू, सेम, गुलदाउदी, गेंदा आदि फसलों के साथ भी बोया जा सकता है। कुछ किसान मक्का के साथ रागी भी लगाते हैं, हालांकि यह अनाज की फसल भी है। कई जगहों पर, जहां मक्का को एक फसल के रूप में उगाया जाता है, गाजर या गेहूं फसल के साथ भी बोया जाता है।
मक्का की खेती में उपयुक्त पानी
मक्का की खेती कम पानी और अधिक पानी दोनों ही परिस्थिति में की जा सकती है। इसलिए मक्का एक अच्छी तरह से सूखी हुई मिट्टी, जो नमी की पर्याप्त मात्रा को बरकरार रखते हुए पानी की सिंचाई को बंद कर देने के बाद भी फसल के लिए पर्याप्त होती है। यानी सिंचाई को थोडें़ दिनों के अंतराल पर करना चाहिए। फूलों की अवस्था के दौरान नमी का स्तर अधिक बना रहना चाहिए क्योंकि यह उपज अधिकतम उत्पादन के लिए एक महत्वपूर्ण चरण है। प्रत्येक 2 दिनों के अंतराल पर एक बार सिंचाई करना सबसे बेहतर तरीका है। क्योंकि यह नमी के स्तर को अधिकतम समय तक बनाये रखता है।
मक्का की खेती के लिए भूमि की जुताई
मक्का की खेती के लिए अत्यधिक उपजाऊ और टाइल वाली मिट्टी की उपयुक्त होती है। इसकी फसल की तैयारी आम तौर पर अप्रैल-मई के महीनों के दौरान की जाती है, अगर मानसून जून और जुलाई में शुरू होता है, तो मक्का की फसल देर से होने वाली मौसम की फसल के लिए, जो सितंबर से अक्टूबर के महीनों के दौरान होती है। इसके लिए खेत को पहले तैयार करना चाहिए पिछली फसल के अवशेष हटा देना चाहिए खरपतवार आदि से खेत को साफ करें फिर खेत में जुताई करें कलेपा चलाए मिट्टी अच्छी तरहा से बुरबुरी हो जाए तब उसमें बीजों का रोपाण करना चाहिए।
मक्का की खेती में कीट और रोग
मक्के की फसल को प्रभावित करने वाली सबसे आम बीमारी है हल्की फफूंदी। लीफ स्पॉट और ब्लाइट अगली बड़ी बीमारी है। बुवाई के 20 दिन बाद मैनकोजेब की आधा किलोग्राम मात्रा का छिडक़ाव करने से उच्च तीव्रता में भी इन दोनों बीमारियों का ध्यान रखा जा सकता है। हालांकि, गंभीर मामलों में, प्रभावित पौधे को हटाने और इसे पूरी तरह से नष्ट करने की सलाह दी जाती है।
खाद डालना
जमीन समतल होने के बाद, गोबर की खाद जैसी जैविक खाद को भी मिलाया जाता है। प्रति एकड़ 7-8 टन खाद की आवश्यकता होती है।
मक्का के खेत की तैयारी मक्का की उद्यान खेती के लिए, आयताकार के रूप में भूखंड तैयार किया जाता है। बुवाई के लिए 40 से 50 सेंटीमीटर की दूरी पर उथले फव्वारे खोदे जाते हैं। यदि मक्का की फसल के साथ कोई दूसरी फसल बोई जाए तो दूसरी फसल के लिए अतिरिक्त जमीन छोडक़र खेत में आयताकार कैयारियां तैयार करें जिससे मिट्टी में अच्छी तरह से जल निकासी हो सकें मिश्रत खेती के मामले में, 50- 60 सेमी की दूरी पर खोदा जाता है।
मक्का की खेती के लिए बीज दर
मक्का की खेती के लिए प्रति एकड़ 5-6 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। बीज को 1 ग्राम बीज के लिए 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचारित किया जाता है। एक बार जब यह उपचार किया जाता है, तो अगले दिन बीज को चावल के घोल में एज़ोस्पिरिलम के साथ इलाज किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया के बाद बीज को अधिकतम आधे घंटे के लिए सुखाएं।
मक्का खेती में सिंचाई
मक्का की खेती में बुवाई से एक दिन पहले भूमि की सिंचाई करनी चाहिए ताकि बुवाई के समय पर्याप्त नमी हो। बुवाई के बाद एक बार फिर सिंचाई करनी चाहिए अगर बारिश नहीं होती है तो बुआई के 3 दिन बाद फसल को सिंचाई की आवश्यकता पढ़ती है। मिट्टी में सूखापन दिखाई देते ही खेत की सिंचाई बहुत जरूरी है। बुवाई के बाद खेत में पानी की निकासी के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए। विकास के 30 दिनों के बाद, सप्ताह में एक बार सिंचाई आमतौर पर पर्याप्त होती है।
विकास और कटाई
जमीन और बीज तैयार होने के बाद, बीज बोये जाते हैं। वृक्षारोपण से एक दिन पहले भूमि की अच्छी तरह से सिंचाई की जाती है। जब जमीन पर्याप्त रूप से नम हो तब बीज बोएं। बीज आम तौर पर 6 दिनों के भीतर अंकुरित होते हैं और जमीन से ऊपर उठते हैं। शुरुआत में विकास धीमा हो सकता है, बाद में पोधों का विकास तेजी से होता हैं। कटाई तब की जाती है जब कोब का बाहरी आवरण हरे से सफेद होने लगता है। यद्यपि हाथ से कटाई करना आसान है, लेकिन रोपण के बड़े क्षेत्रों के मामले में, मशीन कटाई बेहतर है क्योंकि यह मैनुअल श्रम को बचाता है।