That last moment....30 January, 1948 which was with Mahatma GandhiRashtrapita Mahatma Gandhi

30 जनवरी पुण्यतिथि विशेष

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी

हर ऑंखें नम थी…..जब भारत के लोगों को पता चला जिस सीधे सादे कोमल स्वभाव के शख्स ने उन्हें आज़ादी दिलाई थी, वो इस दुनिया को कहे चुका है अलविदा….

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देश को शांतिपूर्ण आंदोलन की ऐसी विरासत दी है जिसके नैतिक बल के आगे बंदूकें तक कमजोर साबित हो जाती हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी मजबूरी का नहीं बल्कि मजबूती का नाम थे। महात्मा गांधी ने भारत को क्या दिया? इस सवाल के अनगिनत जवाब हो सकते हैं। वह सिर्फ आज़ादी की लड़ाई तक सीमित नहीं थे बल्कि इससे भी कहीं बढक़र भारतीय विचारों और आदर्शों से दुनिया को रूबरू कराने वाले भारतीय सभ्यता के अग्रदूत थे।

उन्होंने न सिर्फ संघर्ष के खास अहिंसक तरीके के नैतिक बल से भारतीय जनमानस को परिचित कराया बल्कि उनके द्वारा सामाजिक उत्थान के लिए चलाए गए रचनात्मक कार्यक्रमों ने तत्कालीन समय के सामाजिक, राजनीतिक परिदृश्य के साथ-साथ भारत के भविष्य पर भी अपना व्यापक प्रभाव छोड़ा।

अपने अंतिम दिनों में गांधी जी इस हद तक अपनी मौत का पूर्वानुमान लगा रहे थे कि लगता था कि वो ख़ुद अपनी मौत के षडयंत्र का हिस्सा हैं। 20 जनवरी को जब उनकी हत्या का पहला प्रयास किया गया उसके बाद से अगले दस दिनों तक उन्होंने अपनी बातचीत, पत्रों और प्रार्थना सभा के भाषणों में कम से कम 14 बार अपनी मृत्यु का जिक्र किया।

21 जनवरी को उन्होंने कहा, अगर कोई मुझ पर बहुत पास से गोली चलाता है और मैं मुस्कुराते हुए, दिल में राम नाम लेते हुए उन गोलियों का सामना करता हूं तो मैं बधाई का हक़दार हूं। अगले दिन उन्होंने कहा कि ये मेरा सौभाग्य होगा अगर ऐसा मेरे साथ होता है।

29 जनवरी, 1948 की शाम राजीव गांधी को लिए इंदिरा गांधी, नेहरू की बहन कृष्णा हठीसिंह, नयनतारा पंडित और पद्मजा नायडू गांधी से मिलने बिरला हाउस गए थे। कैथरीन फ्ऱैंक इंदिरा गांधी की जीवनी में लिखती हैं, घर से निकलने से पहले इंदिरा गांधी को माली ने बालों में लगाने के लिए चमेली के फूलों का एक गुच्छा दिया।

इंदिरा ने तय किया कि वो उसे गांधीजी को देंगी। बिरला हाउस में वो लोग लॉन में बैठे हुए थे जहां गांधी एक कुर्सी पर बैठे धूप सेंक रहे थे। वो लिखती हैं, चार साल के राजीव थोड़ी देर तो तितलियों के पीछे दौड़ते रहे लेकिन फिर गांधी के पैरों के पास आकर बैठ गए और इंदिरा के लाए चमेली के फूलों को उनके पैरों की उंगलियों में फंसाने लगे। गांधी ने हंसते हुए राजीव के कान पकड़ कर कहा, ऐसा मत करो। सिर्फ़ मरे हुए व्यक्तियों के पैरों में फूल फंसाए जाते हैं।

30 जनवरी, 1948 को गांधी हमेशा की तरह सुबह साढ़े तीन बजे उठे। उन्होंने सुबह की प्रार्थना में हिस्सा लिया। इसके बाद उन्होंने शहद और नींबू के रस से बना एक पेय पिया और दोबारा सोने चले गए। जब वो दोबारा उठे तो उन्होंने ब्रजकृष्ण से अपनी मालिश करवाई और सुबह आए अख़बार पढ़े।

इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के भविष्य के बारे में लिखे अपने नोट में थोड़ी तब्दीली की और रोज़ की तरह आभा से बांग्ला भाषा सीखने की अपनी मुहिम जारी रखी। नाश्ते में उन्होंने उबली सब्जय़िां, बकरी का दूध, मूली, टमाटर और संतरे का जूस लिया। डरबन के महात्मा गांधी के पुराने साथी रुस्तम सोराबजी सपरिवार उनसे मिलने आए थे।

उसके बाद वो दिल्ली के मुस्लिम नेताओं मौलाना हिफ्ज़़ुर रहमान और अहमद सईद से मिले। उन्हें उन्होंने आश्वस्त किया कि उन लोगों की सहमति के बिना वो वर्धा नहीं जाएंगे। दोपहर बाद गांधी से मिलने कुछ शरणार्थी, कांग्रेस नेता और श्रीलंका के एक राजनयिक अपनी बेटी के साथ आए। उनसे मिलने वालों में इतिहासकार राधा कुमुद मुखर्जी भी थे।

गांधी जी से मिलने आने वालों में सबसे ख़ास शख्स थे सरदार पटेल जो साढ़े चार बजे वहां पहुंचे। गांधी जी और पटेल के बीच पटेल और नेहरू के बीच के बढ़ते मतभेदों पर चर्चा हो रही थी। ये चर्चा इतनी गहरी और गंभीर थी कि गांधी जी को अपनी प्रार्थना सभा में जाने के लिए देर हो गई।

इस बातचीत के दौरान जैसा कि उनकी आदत थी, गांधी जी लगातार सूत कातते रहे 5 बजकर 15 मिनट पर वो बिरला हाउस से निकलकर प्रार्थना सभा की ओर जाने लगे। उन्होंने अपने हाथ अपनी भतीजियों आभा और मनु के कंधों पर टिका रखे थे। चूंकि उन्हें देर हो गई थी, इसलिए उन्होंने प्रार्थना स्थल जाने के लिए शॉर्टकट लिया।

राम चंद्र गुहा अपनी किताब गांधी द इयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड में लिखते हैं, गांधी जी प्रार्थनास्थल के लिए बने चबूतरे की सीढियों के पास पहुंचे ही थे कि, ख़ाकी कपड़े पहने हुए नाथूराम गोडसे उनकी तरफ़ बढ़े। उनके हावभाव से लग रहा था जैसे वो गांधी के पैर छूना चाह रहे हों। वो लिखते हैं, आभा ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने आभा को धक्का दे दिया और उनके हाथ से गांधी जी की नोटबुक, थूकदान और तस्बीह छिटक कर ज़मीन पर आ गिरे।

तभी गोडसे ने अपनी पिस्तौल निकाल कर गांधी जी पर पॉइंट ब्लैंक रेंज से लगातार तीन फ़ायर किए। एक गोली गांधी जी के सीने में और दो गोली उनके पेट में लगी। गांधी जी ज़मीन पर गिरे और उनके मुंह से निकला हे राम ख़ून से भीगी उनकी धोती में मनु को गांधी जी की इंगरसोल घड़ी दिखाई दी। उस समय उस घड़ी में 5 बज कर 17 मिनट हुए थे।

गांधी जी के गिरते ही सुशीला नैयर की एक सहयोगी डॉक्टर ने गांधी का सिर अपनी गोद में रख लिया। राम चंद्र गुहा लिखते हैं, उनके शरीर से जान पूरी तरह निकली नहीं थी। उनका शरीर गर्म था और उनकी आंखें आधी मुंदी हुई थीं। उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वो गांधी जी को मृत घोषित कर दें, लेकिन अंदर ही अंदर वो महसूस कर पा रही थीं कि गांधी जी अब इस दुनिया में नहीं है। गुहा लिखते हैं, सरदार पटेल, गांधी जी से मिलकर अपने घर पहुंचे ही थे कि उन्हें गांधी जी पर हुए हमले की ख़बर मिली।

वो तुरंत अपनी बेटी मणिबेन के साथ वापस बिरला हाउस पहुंचे। उन्होंने गांधी जी की कलाई को इस उम्मीद के साथ पकड़ा कि शायद उनमें कुछ जान बची हो। वहां मौजूद एक डॉक्टर बीपी भार्गव ने एलान किया कि गांधी जी को इस दुनिया से विदा लिए 10 मिनट हो चुके हैं। ठीक 6 बजे रेडियो पर बहुत सोच समझ कर तैयार की गई घोषणा सुनकर भारत के लोगों को पता चला कि जिस सीधे सादे कोमल स्वभाव के शख्स ने उन्हें आज़ादी दिलाई थी, वो इस दुनिया को अलविदा कह चुका था समाचार बुलेटिन में बार-बार दोहराया गया कि उनको मारने वाला व्यक्ति हिंदू था।

गांधी जी की मौत की ख़बर सुनकर वहां सबसे पहले पहुंचने वालों में से एक थे मौलाना आज़ाद और देवदास गांधी। उसके तुरंत बाद नेहरू, पटेल, माउंटबेटन, दूसरे मंत्री और सेनाध्यक्ष जनरल रॉय बूचर वहां पहुंचे। रात को दो बजे जब भीड़ थोड़ी छंटी तो गांधी के साथी उनके पार्थिव शरीर को बिरला हाउस के अंदर ले आए। गांधी जी के शव के स्नान करने की जिम्मेदारी ब्रजकृष्ण चाँदीवाला को दी गई।

चाँदीवाला पुरानी दिल्ली के एक परिवार से आते थे और 1919 से ही जब उन्होंने पहली बार गांधी जी को अपने सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज में बोलते हुए सुना, उस दिन से ही उन्होंने ख़ुद को गांधी जी की सेवा में लगा लिया था। ब्रजकृष्ण चाँदीवाला ने गांधी जी के रक्तरंजित कपड़े उतार कर उनके बेटे देवदास गांधी जी के हवाले किए।

उन कपड़ो में उनकी ऊनी शॉल भी थी जिसमें गोलियों से तीन छेद बन गए थे। ख़ून बहने से उनके कपड़े उनके जिस्म से चिपक गए थे। बाद में ब्रजकृष्ण ने अपनी किताब एट द फ़ीट ऑफ़ गांधी में लिखा, बापू का निर्जीव शरीर लकड़ी के तख़्ते पर रखा हुआ था। मैंने उसे नहलाने के लिए टब से लोटे में ठंडा पानी भरा और बापू के शरीर पर डालने के लिए अपना हाथ बढ़ाया। तभी अचानक अपने आप ही मेरे हाथ रुक गए, बापू ने कभी भी ठंडे पानी से स्नान नहीं किया था।

उस समय रात के दो बज रहे थे। जनवरी की रात की ज़बरदस्त ठंड थी। मैं किस तरह वो बर्फ़ीला पानी बापू को शरीर पर डाल सकता था? मेरे टूटे हुए दिल से एक आह-सी निकली और मैं अपने आँसुओं को नहीं रोक पाया। लेकिन फिर मैंने उसी ठंडे पानी से बापू को नहलाया। मैंने उनके शरीर को पोंछा और वही कपड़ा उन्हें पहना दिया जो मैंने उनके पिछले जन्मदिन पर उनके लिए ख़ुद काता था। मैंने उनके गले में सूत की बिनी हुई माला भी पहनाई और मनु ने उनके माथे पर तिलक लगाया।

अगले दिन गांधी के पार्थिव शरीर को एक खुले डॉज वाहन में रखा गया। उनके पैरों के पास सरदार पटेल बैठे हुए थे जबकि नेहरू उनके सिर के पास बैठे हुए थे। उस वाहन में गांधी के पुराने साथी राजकुमारी अमृत कौर और जेबी कृपलानी भी सवार थे। बिरला हाउस से गांधी जी की शव यात्रा पहले बांए मुड़ी और फिर दाहिने मुड़ते हुए इंडिया गेट की तरफ़ बढ़ चली। शायद पहली बार लोगों को इंडिया गेट की दीवार पर चढ़ कर महात्मा गांधी की शवयात्रा को देखते हुए देखा गया।

माउंटबेटन के निजी सचिव एलन कैंपबेल जॉन्सन ने अपनी किताब मिशन विद माउंटबेटन में लिखा, अंग्रेज़ी राज को भारत से हटाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी को उनकी मृत्यु पर भारत के लोगों से ऐसी श्रंद्धांजलि मिल रही थी जिसके बारे में कोई वायसराय कल्पना भी नहीं कर सकते थे।

जब गांधी जी की शवयात्रा दिल्ली गेट के पास पहुंची तो तीन डकोटा विमानों ने नीचे उड़ान भरते हुए राष्ट्रपिता को सलामी दी। बाद में अनुमान लगाया गया कि महात्मा गांधी की शवयात्रा में कम से कम 15 लाख लोगों ने भाग लिया। मशहूर फ़ोटोग्राफऱ मार्ग्रेट बर्के वाइट ने जब अपने लाइका कैमरे के लेंस को फ़ोकस किया तो उनके ज़हन में आया कि वो शायद धरती पर जमा होने वाली सबसे बड़ी भीड़ को अपने कैमरे में कैद कर रही हैं।

अंत्येष्ठि स्थल से 250 मीटर पहले डॉज गाड़ी का इंजन बंद कर दिया गया और भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना के 250 जवान चार रस्सों की मदद से गाड़ी को खींच कर उस स्थान पर ले गए जहां गांधी जी की चिता में आग लगाई जानी थी।

आकाशवाणी के कमेंटेटर मेलविल डिमैलो ने लगातार सात घंटे तक माहात्मा गांधी की शवयात्रा का आंखों देखा हाल सुनाया।