नीरज तुम्हारे मामा जी का फोन आया था। बाबू जी की तबीयत ठीक नहीं है। क्या तुम कल मुझे बाबू जी के पास ले चलोगे।
हाँ क्यों नहीं मम्मी। कल सुबह हम जल्दी चल देगें।
दुसरे दिन नीरज अपनी मम्मी को लेकर गांव जाता हैं। नीरज को बचपन से ही गांव जाना बहुत पसंद है। शहर की भागमभाग जिन्दगी से उसे गांव में बिताएं सुकून के दो पल अच्छे लगते हैं। गांव में खेत में लहराती फसल प्रकृतिक सोन्दर्य से सजा वातावरण कुछ अलग ही रास्तों पर जिन्दगी की रहो को मोड़ देता हैं।
अपनी मम्मी को गांव में नाना जी के घर छोड़ कर वो शाम के वक्त गांव से निकला। वो जब भी गांव आता है उसे यहां से जाने का दिल नहीं करता है। लेकिन शहर में उसकी जो जिम्मेदारी है उससे भी वो पीछे नहीं हट सकता है।
नीरज को बचपन से ही दुसरो की मदद करना अच्छा लगता था। शायद इसलिए ही उसने बडे़ होकर डॉक्टर बनने का फैसला किया था। ताकि ज्यादा से ज्यादा मजबूर और परेशान लोगों की मदद कर सके। उसने देखा था ज्यादा से ज्यादा डॉक्टर लोगों की मजबूरी का फायदा उठाते हैं। उनका मकसद किसी की जिन्दगी बचाने से ज्यादा पैसा कमाने का होता हैं।
नीरज ने अपनी महेनत के दम पर आपना एक ऐसा हास्पिटल बनाया था जहाँ गरीबों की मदद की जा सके।
विरासत के रूप में उसके पास पूर्वजों की खेती थीं। इसलिए पैसों की उसके पास कमी नहीं थी।
इसलिए दिल से जनमानस की सेवा को उसने अपना परमधर्म मान लिया था। वो अपने कर्तव्य को बड़ी निष्ठा के साथ निभा रहा था।
आज सुबह से ही वो हास्पिटल मे नहीं था। इसलिए उसके पास फोन पर फोन आ रहे थे। इसलिए उसने शाम को ही शहर वापिस जाने का फैसला किया था। उसके नाना जी की तबियत अब ठीक थी।
अभी नीरज गाँव से निकला ही था। कि उसे अपनी गाड़ी के पीछे के काँच के टुटने की अवाज लगी। उसने गाड़ी रोक कर देखा तो पीछे की सीट पर एक पत्थर पड़ा था। और गाड़ी का शिशा टुट गया था। उसने आस-पास देखा तो पास ही एक खेत मे आम के पेड़ के निचे एक लड़की खड़ी थी। लड़की पीले रंग का सलवार सूट पहने हुए थीं। उसके पीले दुपट्टे मे रखी हरी-हरी केरी दिख रही थी।
नीरज ने सोचा जरूर इस लड़की ने केरी तोड़ने के लिए आम के पेड़ पर पत्थर मारा होगा। नीरज ने हाथ में पत्थर लेकर खेत में गया। उस लड़की से कहा ये पत्थर तुमने फैका हैं। इतनी लपरवाह कैसे हो सकती हो तुम? देखों तुम्हारे फैके पत्थर से मेरी गाड़ी का काँच टुट गया है। सोचो अगर ये पत्थर मेरे सिर पर लगा होता तो मेरा क्या होता। वैसे भी इस सड़क पर रोज कितने मुसाफ़िर गुजरते हैं। ऐसे लपरवाही से पत्थर चलाना ठीक नहीं हैं।जानती हो अगर किसी मुसाफ़िर को गम्भीर चोट लग गई तो कितना तकलीफ दे होता है। उसके और उसके परिवार के लिए किसी हादसे का शिकार होना। पल भर में इंसान की पुरी जिन्दगी ही बदल के रह जाती हैं। मैं एक डॉक्टर हूँ। मैं रोज देखता हूँ। कैसे एक हादसे का शिकार होकर इंसान कितना मजबूर हो जाता है।
नीरज बस बोले जा रहा था वो लड़की खमोशी से उसकी बातें सुन रही थीं। नीरज की बातें सुनकर उसका मासूम चहेरा उतर गया था। दुपट्टे मे रखी केरी उसके हाथ से छुटकर नीचें गिर गई। अब उसकी झील सी खुबसूरत आँखें झरने की तरह बहने लगीं थीं। और वो बदहवास सी बस रोए जा रही थी।
नीरज को कुछ समझ मे नहीं आ रहा था ऐसा उसने उससे क्या कह दिया वो रोने लगीं उस लड़की को रोता देख दूर पेड़ के पीछे छुपी एक बच्ची निकलकर आई। और उसने उस लड़की का हाथ पकड़कर उसे नीचें बिठाया और उसके आँसू पोछते हुए कहा गुंजन दीदी आप मत रोओं। इसमें आपकी कोई गलती नहीं है।
ये बाबू जी आपको थोड़ी कुछ कह रहे है। इनकी गाड़ी का काँच मेरे फैके पत्थर से टुटा हैं। ऐ शहरी बाबू मेरी गुंजन दीदी को कुछ मत कहना। जो कहना है मुझे बोलो मेरी गुंजन दीदी को कुछ कहा तो इसबार मैं इस पत्थर से तुम्हारा सर फोड़ दुगी।
लड़की ने बच्ची को टटोल कर पकड़ा और कहा नहीं बुलबुल गलती हमारी है। हमें इनसे माफी मांगनी चाहिए।और गुंजन ने अपनी कान मे डली सोने की बाली उतार कर बुलबुल को दी। और कहा बुलबुल ये बाली तुम इन्हें दे दो। नहीं गुंजन दीदी ये वाली तो बाबा ने कितनी महेनत कर के आपके लिए बनवाई थी। नहीं हम नहीं देगें ये बाली। लेकिन बुलबुल हमारे पास और कुछ नहीं है। जिससे हम इनके नुकसान की भरपाई कर सके। बुलबुल ने वो बाली नीरज को दे दी।नीरज तो गुंजन को देख शक्ड था। इतनी खुबसूरत लड़की। इतनी ज्यादा सुन्दर आँखें लेकिन देख नहीं पाती हैं। उसे देख कर लगता ही नहीं है ये अपनी आँखों से देख नहीं सकती हैं।
पुरी संगमरमर से तरासी मुर्ति की तरह है ये। इतनी खुबसूरत ऐसा लगता हैं। आसमान से कोई परि उतर कर मेरे सामने खड़ी हो।
नीरज सोच रहा था जो आँखों से नहीं देख सकते है, उनकी आँखों से अलग ही लगता है। इन आँखों में रोशनी नहीं है। लेकिन गुंजन को देख कर ऐसा क्यों नहीं लगता है।
नीरज सोच ही रहा था। गुंजन और बुलबुल उसके हाथ में सोने की बाली देकर जा चुकी थी। नीरज अपनी धुन में उन्हें जाते हुए देख रहा था।
जब वो आँखों से औझल हो गई। तो नीरज ने चौक कर अपने हाथ मे रखी सोने की बाली को देखा। ओ नो ये बाली ये मैं कैसे रख सकता हूँ। फिर उसने गुंजन और बुलबुल को अवाज दी लेकिन वो बहुत दूर जा चुकी थी।
मजबुरन नीरज गाड़ी में आकर बैठ गया। लेकिन उसके दिल में बस गुंजन का ही ख्याल था। उसकी जिन्दगी मे गुंजन वो पहली लड़की थी। जिसको देखकर वो इतना बैचेन था।
इसी बैचेनी मे वक्त कब पंख लगाकर उड़ गया पता ही नहीं चला। एक अन्जान लड़की के ख्यालों में खोए हुए नीरज का एक हफ्ता गुजर गया। उसकी मम्मी अब वापिस आना चाहती थी।
नीरज भी गुंजन से दुवारा मिलने की ख्वाहिश लिए गांव गया। सोच रहा था वो कैसे गुंजन से दुवारा मिलेगा। उसे तो ये भी नहीं मालूम वो कहा रहती हैं।वो ये सोच ही रहा था के उसे गुंजन की बाली का ख्याल आया। उसने अपने जेब से बाली निकाल कर हाथ मे रखी। और मुस्कुराया हो सकता है ये बाली मुझे गुंजन तक पहुंचने मे मेरी मदद करें।
दिल में एक बार फिर गुंजन को मिलने की आश लिए नीरज गांव के मार्केट गया। वहाँ पर एक ही बड़ी सुनार की दुकान थी। वो वह गया। काका क्या आप बता सकते है ये बाली आपके यहां की बनी हुई है।
दुकानदार ने बाली को देख कर कहा। हाँ बेटा है तो ये इसी दुकान की बनी हुई। अच्छा काका आप बता सकते हैं ये बाली किसने बनबाई थी। नहीं बेटा इतनी पुरानी बात कहा याद रहती हैं।
काका मैं आपकी थोड़ी मदद कर सकता हूँ। शायद आपको कुछ याद आये। ये बाली जिस लड़की की है उसका नाम गुंजन हैं। वो इसी गांव में रहती हैं।
अरे हाँ बेटा ये तो राजेंद्र की बेटी गुंजन की बाली हैं। मैंने अपने हाथों से बनाई थी। राजेंद्र ने दिन रात महेनत करके अपनी बेटी के लिए उसके 15 वे जन्मदिन पर ये बाली बनबाई थी। गुंजन बाली को देखकर कितनी खुश थी।और शायद ये उसकी आखिरी खुशी थी जो इस गांव की अवो हवा ने महेसुस की थी।
काका आप ऐसा क्यों कह रहे है। क्या आप गुंजन के बारे मे मुझे कुछ बता सकते है। मैं जानना चाहता हूं वो कहा रहती हैं। नहीं बेटा वो हमारे गांव की बेटी है। मैं किसी अन्जान लड़के को क्यों उसके बारे मे बताऊं।
प्लीज़ काका मुझे उसके बारे में जानना बहुत जरुरी है।आप मेरी मदद कर सकते हैं। तुम कोन हो बेटा? उसके बारे में क्यों जानना चाहते हो?काका मे चौधरी घनश्याम जी का नाती हूं। मेरा नाम डॉक्टर नीरज कुमार है। मैं पिछले हफ्ते गुंजन से मिला था। उसे देख कर ऐसा लगा नहीं वो अपनी आँखों से नही देख सकती हैं। मैं एक डॉक्टर हूं। इसलिए उसका इलाज करना चाहता हूं। मैं चहता हूं। वो अपनी आँखों से दुवारा ये दुनिया देख सकें। इसलिए मैं उसके। परिवार से मिलना चाहता हूं। क्या अब आप मुझे उसके बारे मे बताएंगे।
क्यों नहीं बेटा जब तुम्हारा मकसद इतना नैक हैं। तो मैं तुम्हें जरूर बताता हूँ। एक वक्त था बेटा जब गुंजन से इस गांव की हंसी खुशी जुड़ी हुई थी। बेटा गुंजन बचपन से बहुत शरारती लड़की थी। हसना मुस्कुराना ही उसकी जिन्दगी थी। पढ़ने मे भी वो बहुत होशियार थी।
लेकिन फिर एक हादसे ने उस बच्ची की सारी खुशियाँ छीन ली। कैसा हादसा काका? 6 साल पहले की बात है बेटा। उस बार गुंजन के जन्मदिन के दिन ही दिपावली थी। गुंजन उस दिन बहुत खुश थी। उसके बाबू जी ने उसे ये बाली बनवा के दी थी।
उस दिन गुंजन के छोटे भाई बहेन और गांव के बच्चे फटाके फोड़ रहे थे। गुंजन दूर अपने घर के दलान मे खड़ी सबको देख रही थी। क्योंकि वो फटाको की आवाज से डरती थी। उस दिन उसका डर सामने आया।
उस दिन फाटके जलाते वक्त एक चिंगारी फटाके की थैली मे लगी। गुंजन कुछ समझ पाती इससे पहले फटाके की थैली में आग लग गई थी। गुंजन मासूम बच्ची थी। उसको कुछ समझ मे नहीं आया वो क्या करें। उसका घर कच्चा था। डर गई घर में आग न लग जाए। इसलिए थैली को हाथ में उठा कर मैदान की तरफ भागी और बेहोश हो गई। उस हादसे के बाद गुंजन अपनी आँखों से नहीं देख पाई।
बेटा कभी तुम हमारी गुंजन की आँखों की रोशनी वापस ला दो तो ये पुरा गांव तुम्हारा अहसानमंद होगा। काका मैं अपनी तरफ से पुरी कोशिश करूंगा। काका आप मुझे गुंजन का घर बतायेंगे। क्यों नहीं बेटा? फिर नीरज गुंजन के घर पहुंचता हैं। और गेट खटखटाता हैं। बुलबुल दरबाजा खोलती है। चौक कर कहती हैं। शहरी बाबू तुम यहां? और जल्दी से दरबाजा बंद कर के घर में चली गई। नीरज दुवारा गेट खटखटाता है। बुलबुल..।
गुंजन बुलबुल से कहती हैं। बुलबुल देखों दरबाजे पर कोन हैं? गुंजन दीदी रहने दो। क्यों बुलबुल? दीदी वो उस दिन बाला शहरी बाबू हैं। जरूर बाबा से हमारी शिकायत करने आया होगा। अच्छा जाके देखो तो। नहीं दीदी मुझे नहीं जाना माँ वहीं है। गर उसने शिकायत की तो। नहीं बाबा मैं तो नहीं जाऊं।
फिर गुंजन की मम्मी ने दरबाजा खोला । और नीरज से हेरानी से पुछा कोन हैं आप? किससे मिलना है। मेरा नाम डॉक्टर नीरज कुमार हैं। मुझे आप से और गुंजन के पापा से मिलना है। आईए आप। आप को हमसे क्या काम है।
देखिए मैं गुंजन का ईलाज करना चाहता हूं। मेरा शहर में बहुत बड़ा हास्पिटल हैं। मैं चाहता हूं आप गुंजन को वहां लेकर आए। मुझे लगता है। उसकी आंखें ठीक हो सकती हैं। वो दुवारा देख सकती हैं।
देखिए डॉक्टर सहाब हमारी बेटी दुवारा देख पाएगी ये हमारे लिए बहुत बडी खुशी की बात है। लेकिन हमारे पास इतना पैसा नहीं है। के हम आपनी बेटी का शहर के बडे़ हास्पिटल मे इलाज करा सकें।
आप चिन्ता मत किजिए मैं। आपसे इलाज के पैसे नही लुगा। लेकिन क्यों? गुंजन जैसी होनहार लड़की दुवारा अपनी आँखों से देख पाये । मैं यही चाहता हूं।
देखों बेटा कभी हमारी बेटी अपनी आँखों से दुवारा देख पाए ये हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी की बात होगी। लेकिन हम तुम्हारा इतना बड़ा अहसान कैसे चुका पाएंगे।आपने मुझे बेटा कहा है तो बेटे का फर्ज भी अदा करने दिजिये। मैं कल गाड़ी भेजूंगा। आप गुंजन को लेकर हास्पिटल आ जाना। ये मेरा काड हैं। वहां आ कर आप सीधे मुझसे मिलना। अच्छा मैं चलता हूँ। अरे हाँँ बुलबुल कहा है। उसे बुलाईए।
ये लो बुलबुल तुम्हारी दीदी की बाली उनसे कहना ये बाली वो सभालकर रखें। जब वो दुवारा देखने लगेगी। जब इस पहन कर आपना हस्ता मुस्कुराता चहरे को आईने मे देखेगी।
अब नीरज ने गुंजन का इलाज शुरू कर दिया था। और उसने गुंजन की रिपोर्ट बहार के डॉक्टरों को दिखा कर बात कर ली थी।
वक्त जैसे पंख लगाकर उड़ते जा रहा था। इन गुजरे वक्त में नीरज पुरी तरह श्योर हो गया था के वो गुंजन को ठीक कर सकता है। साथ ही इन गुजरे हुए वक्त में गुंजन ने नीरज के दिल में एक खास जगह बना ली थी।
जैसे-जैसे दिन गुजर रहे थे। और गुंजन के ठीक होने के चांस बड़ गए थे। लेकिन इस बीच गुंजन की खुशियों के बीच एक नई अड़चन आ गई। गांव के कुछ दकयानुसी सोच रखने वाले लोग कहने लगे। शहर का इतना बड़ा डॉक्टर क्यों कर गुंजन की इतनी मदद कर रहा है।
लोगों के दिल मे जो आता वो कहते। तंग आकर गुंजन के पापा ने गुंजन का इलाज के लिए शहर जाना बंद कर दिया। नीरज ने उन्हें बहुत समझाया वो दुसरो की बातों में आकर आपनी बेटी का भविष्य बरबाद न करें।
लेकिन गुंजन के पापा नहीं माने। उन्होंने कहा बेटा हमें तुम पर पुरा भरोसा है। लेकिन रहना तो हमें इसी गांव में है। गांव वालों के खिलाफ हम नहीं जा सकते है।अब नीरज इस बात से बहुत परेशान था। वो उदास रहने लगा। उसकी सारी महेनत बेकार हो गई थी। जब नीरज की मम्मी को ये बात पता चली तो वो गुंजन के घर गई। ताकि उसके मम्मी-पापा से बात कर सके।
नीरज की मम्मी की गाड़ी जैसे ही गुंजन के घर के सामने रुकी। गांव के बहुत सारे लोगों की भीड़ लग गई। सब ये जानने के लिए बैताब थे वो यहां क्यों आई है।
नीरज की मम्मी ने गुंजन के मम्मी पापा को समझने की कोशिश की। के वो गुंजन का इलाज दुवारा शुरू कर दे। लेकिन वो इंकार ही कर रहे थे। बेचारे अपनी बेटी की खुशियों के आगे गांव वालों से डरे हुए थे। गुंजन दूर घर के बरामदे मे खड़ी थी। सबकी बातें सुन रही थी। उसकी आँखों में आँसू थे।
एक बार फिर नीरज की मम्मी के सामने गांव की कुछ औरतों ने बात करना शुरू कर दी। नीरज की मम्मी ने किसी की बात का कोई जबाब नहीं दिया।
वो उठी और अपने हाथ में डलें सोने के कंगन उतार के गुंजन के हाथ में पहना दिये। और कहा आज से गुंजन मेरे घर की बहु हैं। ये मेरे घर के खानदानी कंगन हैं। जो मैंने सगुन के तोर पर गुंजन को पहना रही हूं। इसके आगे किसी को कुछ कहना है तो कहें।
आज से गुंजन मेरी बेटी हैं। आने वाले पंद्रहवे दिन मैं बड़ी धुमधाम से अपने बेटे नीरज की बरात लेकर इस दरबाजे पर आऊंगी और शान के साथ आपनी बेटी को अपने घर लेकर जाऊंगी।
नीरज की मम्मी की बातें सुनकर सब गांव वाले हेरानी से एक -दुसरे का मुह देख रहे थे। गुंजन के मम्मी पापा भी हेरानी से नीरज की मम्मी को देख रहे थे।गुंजन नीरज की मम्मी के पाओ पकड़ कर वहीं बैठ गई।और रोते हुए कहा मुझ पर इतना बड़ा अहसान मत किजिए मैं आपके बेटे के काबिल नहीं हूँ। गुंजन की सिशकिया बंध गई थी।
उठो बेटा तुम क्या हो ये हमारे दिल से पुछो। तुम्हारे जैसी संस्कारी और सवगुण सम्पन्न बेटी मे चिरांग हाथ में लेकर ढुडुगी तो नहीं मिलेगी। बेटा तुम्हारी जगह मेरे कदमों में नहीं मेरे दिल में हैं। आज तो मैं बहुत खुश हूँ। दुनिया की सारी दोलत थी मेरे पास बस एक बेटी की कमी थी जो तुमने मेरी जिंदगी में आकर पुरी कर दी है। नीरज की मम्मी ने गुंजन को अपने गले लगा ली।
नीरज की मम्मी घर पह़ुंचती हैं। नीरज ये जानने के लिए बैताब था के गुंजन के मम्मी पापा ने क्या कहा? नीरज की मम्मी ने कहा नीरज गुंजन के मम्मी पापा और सब गांव वाले गुंजन के इलाज में अब कोई रोक नहीं लगाएंगे।
सच मम्मी ये तो बहुत बड़ी खुशी की खबर है। अब गुंजन दुवारा देख पाएंगी। लेकिन मम्मी ये चमत्कार कैसे हुआ? ये उम्मीद की किरण मुझे तुम्हारे हस्ते-मुस्कुराते चहेरे मे नजर आई थी।
उन्हीं अरमानों के फूलों से मैंने एक खुशी की चुन्नी बनाईं और उसे गुंजन के सर पर डाल आई। इस खुशियों के साये में आने के बाद गुंजन की सारी मुस्किले आसान हो गई।
नीरज मैने गुंजन को तुम्हारी जिन्दगी का हमसफर बनाने का फैसला किया है। तुम खुश हो न नीरज? नीरज अपनी मम्मी को हेरानी से देख रहा था। वो मुस्कुराया फिर उसकी आँखों में आँसू आ गए। वो अपनी मम्मी के गले लगया।
बेटा मैं तुम्हारी माँ हूँ। मुझसे तुम्हारे दिल का हाल छुपा नहीं है। मैं उसी दिन समझ गई थी जब तुम ने मुझे गुंजन से मिलवाया था। और गुंजन ने कहा था। वो अपनी आंखों की रोशनी वापिस मिलने के बाद सबसे पहले तुम्हारा ही चहेरा देखना चाहती हैं। उस वक्त तुम्हारे चहरे पर जो खुशी झलक मुझे नजर आई थी वो मेरे लिए अनमोल थी।बेटा मुझे उम्मीद है तुम गुंजन को ठीक कर लोगे। इसलिए मैंने तुम दोनों की खुशियों की राहों मे आने वाली हर मुस्किल को असान कर दिया हैं। अब नीरज बस मुस्कुरा रहा था। उसे उम्मीद थी आने वाले साल की दिपावली गुंजन और उसकी जिन्दगी मे नई खुशियां लेकर आएंगी।
लेखिका- सैय्यद शबाना अली