देखते ही देखते पूजा का भी वक्त करीब आ गया था। प्रकृति सौम्य की तस्वीर अपने हाथ में लिये खड़ी थी। चांद निकला प्रकृति ने अपनी आंखों को बंद करके चांद की तरफ छन्नी की और सौम्य की फोटो को आगे किया। इतने में किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया। प्रकृति ने देखा तो सौम्य उसके सामने खड़ा था। सौम्य को देखकर उसके आंखों में आंसू निकल आये….
आज प्रकृति पुरी तरह से टुट कर बिखर गई थी। उसकी जिन्दगी में चारों तरफ गम के ही बादल छाए हुए थे। दूर-दूर तक कोई खुशी की किरण नजर नहीं आती थी। उसने अपनी जिन्दगी में कभी नहीं सोचा था के उसकी जिन्दगी में भी कभी ऐसा मुकाम आएगा। जब किसी के बिना जीना मुश्किल हो जाएगा। लाख तड़पेगा ये दिल लेकिन उसकी फरियाद उस तक नहीं पहुंच पायेगी।
सौम्य से शादी से पहले वो बहुत सिधी सच्ची अलहड़ सी लडक़ी थी। जो जिन्दगी की हर मुश्किल को चुटकियों में हल करने का जज्बा रखती थी। फिर जिन्दगी की बड़ी से बड़ी मुश्किल उसका रास्ता नहीं रोक पाती थी। हर मुश्किल को पीछे छोडक़र वो आगे बढ़ जाती थी।
लेकिन आज वो सौम्य के प्यार में पुरी तरह से टुट कर बिखर चुकी है। उसे अपनी जिन्दगी का कोई हल ही नहीं नजर आता है। वो बार -बार यही सोचती है उसके साथ ही ऐसा क्यों हुआ है? वो चाहकर भी क्यों कुछ नहीं कर पा रही है?
उसे आज भी वो दिन याद है जब उसकी जिन्दगी में सौम्य खुशियों की बहार बनकर आया था। वो कितनी ज्यादा खुश थी जब उसकी और सौम्य की शादी हुई थी। लाखों अरमान थे उसकी आंखों में जिन्हें वो पुरा करना चाहती थी। लेकिन फिर पल भर में उसके अरमान ऐसे बिखरे के फिर नहीं सबर पाए।
सौम्य के साथ उसकी अरेंज मैरिज हुई थी। सौम्य से पहली मुलाकात से लेकर इंगेजमेन्ट शादी तक सब कुछ ख्वाबों ख्यालों में जीने जैसा था।
लेकिन शादी के कुछ दिन बाद ही सौम्य के गुस्सा करने की आदत की वजह से सब कुछ खतम होता चला गया। प्रकृति हर बार सब कुछ ठीक करने की कोशिश करती लेकिन सौम्य अपना स्वभाव बदलने को तैयार नहीं था।
फिर दूरिया थी जो बढ़ती चली जा रही थी।और एक दिन सौम्य ने प्रकृति को घर छोडऩे को कहा प्रकृति नहीं मानी लेकिन सौम्य अपनी जीद पर अड़ा रहा। आखिर हार कर प्रकृति अपने घर वापिस आ गई। घर आकर उसने अपने मम्मी-पापा से कुछ नहीं कहा लेकिन अपनी बेटी के उदास चहरे को देखकर वो सब समझ गए थे। लेकिन कर भी क्या सकते थे बेटी के माँ-बाप थे हर हाल में मजबूर हो जाते है।
आज भी प्रकृति अपने घर के आगन में उदास बैठी खिले फूलों को देख रही थी। और अपनी अशांत हो चुकी जिन्दगी में खुशियों के कुछ रंग भरने की कोशिश कर रही थी।
फिर प्रकृति की मम्मी ने आकर उससे कहा क्या हुआ प्रकृति आज भी इस तरह से उदास क्यों बेटी हो आज करवा चौथ है बेटा ये लो रंगोली के रंग और हर साल की तरह आंगन को इन रंगों से सजा दो। नहीं माँ आज मेरा दिल नहीं कर रहा है। बेटा हर साल तो तुम बहुत खुशियों के साथ सबके लिए घर को सजाती थी आज क्यों नहीं? आज तुमने भी सौम्य के लिए व्रत किया है। बेटा खुशियों के साथ इस दिन को जियों देखना जिन्दगी खुशियों के रंगों से भर जाएगी। हां प्रकृति चलों हम रंगोली बनाते है। मां ठीक कह रही है। देखना सब ठीक हो जाएगा। और प्रकृति की भाभी उसका हाथ पकडक़र उसे रंगोली बनाने बिठा देती है।
प्रकृति सोचने लगती है। आज से पहले इस घर में ये दिन बचपन से उसके लिए कितना खुशियों भरा होता था। वो कितने प्यार से हर साल मैन गेट से लेकर आंगन तक रंगोली के रंगों से सजा देती थी। शाम होते तक सारा घर दियों की जगमघहाट से रोशन हो जाता था। वो आंगन में बहुत बड़ी रंगोली बनाती थी उसके बिच में एक मिट्टी का कुड रखती थी ताकि चांद के निकलते ही कुड में चांद निकलने का पता चल जाए। सब आसानी से चांद को देख पाए।
लेकिन आज उसका पहला करवा चौथ का व्रत है। वो सोच रही है। सौम्य के बिना वो कैसे पूजा करेगी। क्या सौम्य को इस बात का एहसास भी है उसने आज उसके लिए व्रत किया है।
दिन यूहीं इसी कश्मकश में ढल गया। उसकी मम्मी भाभी ने पूजा की पुरी तैयारी कर ली थी। अपने भाई-भाभी के चहरे पर खुशी देखकर प्रकृति सौम्य को याद कर रही थी। काश सौम्य आज इसी तरह खुशियों के साथ उसके साथ होता।
माँ के कहने पर आज भी वो दुल्हन की तरह तैयार हुई थी। लेकिन आज उसके चहरे पर वो खुशी नहीं थी। जो वो अपने जीवन में चाहती थी।
देखते ही देखते पूजा का भी वक्त करीब आ गया था। प्रकृति सौम्य की तस्वीर अपने हाथ में लिये खड़ी थी। चांद निकला प्रकृति ने अपनी आंखों को बंद करके चांद की तरफ छन्नी की और सौम्य की फोटो को आगे किया। इतने में किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया।
प्रकृति ने देखा तो सौम्य उसके सामने खड़ा था। सौम्य को देखकर उसके आंखों में आंसू निकल आये। सौम्य ने उसके आंसू को पोछ कर कहा नहीं प्रकृति आज नहीं आज में तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं आने दूंगा। फिर प्रकृति ने पूजा की सौम्य ने बहुत प्यार से उसको पानी पीला कर उसका व्रत पुरा किया।
फिर सौम्य ने कहा हो सके तो मुझे माफ कर दो प्रकृति चलो अपने घर चलो वो घर तुम्हारे बिना बहुत सुना-सुना है। मैं मानता हूं गलती मेरी थी। मैं देख रहा था मेरे गुस्से की आदत की वजह तुम कितना परेशान थी। मैं नहीं चाहता था मेरे गुस्से की वजह से हमारे रिश्ते में कोई बड़ी दरार आये। और ये रिश्ता टुट जाए। मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता था प्रकृति मैं इस रिश्ते को टुटने से बचाना चाहता था। इसलिए मैंने तुम्हें घर जाने को कहा था।
तुम नहीं जानती हो प्रकृति इतने दिन मेरे तुम्हारे बिना कैसे कटे है। हमेशा तुम्हे याद करके रोता था मैं। अपने आपको इस तरह से इसलिए सजा दें रहा था। क्योंकि मैं तुम्हे खोना नहीं चाहता था। मैं इस रिश्ते की गहराई को अच्छे से समझता हूं। मैं जानता था आज तुमने मेरे लिए करवा चौथ का व्रत रखी होगी। इसलिए मैं अपने आपको आज नहीं रोक पाया और तुम्हारे प्यार के बंधन में बंधा यहां चला आया।
प्लीस प्रकृति मेरी गलतियां माफी के काबिल तो नहीं है। लेकिन मैं जानता हूं तुम्हारा दिल साफ है तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो प्लीस मुझे माफ कर दो।
पुरे एक महीने बीत गए है सौम्य तुमने मुझे कितना रूलाया है। जानते भी हो तुम। मेरा कॉल तक रिसिव नहीं कर रहे थे तुम।
मैं तुम्हारी मम्मी पापा से तुम्हारी खबर लें रहा था। मैं जानता हूं एक दूसरे से दूर होने का एहसास मुझे ही नहीं तुम्हें भी तड़पा रहा था। लेकिन चाहता था। मुझे इस बात का एहसास हो जिस से मैं अपनी जान से ज्यादा प्यार करता हूं आज अपनी एक गलती की वजह से वो कितना तकलीफ है।
आज मुझे इस बात का एहसास है अब मैं कभी ऐसा नहीं होने दूंगा। सौम्य की आंखों में आंसू थे वो पछताताव की अग्नि में जल कर कुंदन बन गया था। प्रकृति को इस बात का एहसास हो गया था। इसलिए उसने उसे माफ कर दी। आज प्रकृति सौम्य की जिन्दगी एक बार फिर से खुशियों की बहारों के फूलों से महकने लगी थी।
सैयद शबाना अली
हरदा मध्य प्रदेश