story of a kite without a stringStory Bin Dori Ki Patang

आज मकर संक्रान्ति का त्यौहार था। साक्षी अपने बहेन-भाई के बच्चों के साथ घर की छत पर पतंग उड़ा रही थी। साक्षी को पतंग उड़ाने का बहुत शौक था। वो बहुत ही अच्छी पतंग उड़ाया करती थी। उसकी पतंग हमेशा आसमान की बुलंदियों को छुती थी। कभी कोई उसकी पतंग को नहीं काट पाता था।

साक्षी को बच्चों के साथ खेलना बहुत अच्छा लगता था। वो बच्चोंं के साथ बहुत खुश रहती थी, बच्चोंं को भी उसके साथ अच्छा लगता था। क्योंकि जब वो बच्चों के साथ होती तो खुद भी अपने बचपन में खो जाती थी।

शायद इस तरह से वो अपने अंदर छुपी ममता को राहत पहुंचाने की कोशिश करती थी। कहीं न कहीं ममता की प्यास उसमें भी मौजूद थी जो उसे जिन्दगी में चैन से मुस्कुराने नहीं देती थी।

अपने पापा की अचानक मौत के बाद साक्षी ने जिस तरह से अपने छोटे भाई-बहेनों को संभाला। उससे सब उसकी तारीफ ही करते है। हर कोई कहता था भगवान बेटी दें तो शर्मा जी की बेटी की तरह दें जिस तरह से अपने पिता की बीमारी में उसने उन्हें संभाला ही नहीं उनकी हर पल हिम्मत भी बढ़ती रही,अपने बुलंद हौसलों की वजह से उसने अपने पिता को हर मुश्किल के दौर बहार निकाल लिया।

लेकिन होनी कुछ और ही मंजूर था एक दिन पुरी तरह से ठीक होने के बाद उसके पिता अचानक उसे इस दुनियां में अकेला छोडक़र चले गए। अपने पिता के जिन्दगी के चिंराग बुझ जाने के बाद साक्षी बुरी तरह टुटकर बिखर गई। उसकी आंखों में हर पल आंसू थे। जिन्दगी जीने की उम्मीद की खत्म हो गई थी उसमें।

फिर उसने अपने छोटे भाई-बहनों की तरफ देखा जो अभी नसमझ थे। जिन्दगी की इस कढबी सच्चाई से अंजान थे। अब उनके पिता कभी उनके पास लौट कर नहीं आ सकते है।

साक्षी ने अपनी जिन्दगी को एक नई दिशा दीं और अपने भाई-बहनों की खुशियों के लिए अपनी जिन्दगी जीने लगी। आज जिन्दगी के तीस बंसत देख चुकी साक्षी ने अपने भाई-बहनों को इस तरह से संभाला हमेशा पिता की तरह उनके सर पर हाथ रख कर खड़ी रही।

कभी अपनी जिन्दगी के बारे कुछ नहीं चहा अपने भाई-बहनों की खुशियों के लिए ही सदा मुस्कुराकर हर कठनाई सहती रही।

इस का अच्छा फल भी उसे मिला आज वो अपनी दोनों छोटी बहनों की अच्छे घरों में शादी कर चुकी है। वो अपने परिवार के साथ खुश है। छोटे भाई की भी दुल्हन वो घर लें आई। आज अपने भाई बहनों के बच्चों के साथ कुछ पल ही उसे जिन्दगी की हर खुशी दे जाते है।

लेकिन वक्त गुजर जाने के बाद आज साक्षी की मां चाहती है साक्षी अपनी जिन्दगी में आगे बढ़ जाये। और शादी कर के अपनी जिन्दगी में खुश रहें इसलिए आये दिन वो कोई न कोई लडक़े की फोटो उसके सामने रख देती है। लेकिन हर बार साक्षी मुस्कुराकर मां को मना कर देती है।

आज मकर संक्रान्ति है साक्षी की दोनों बहने अपने बच्चों के साथ घर आई है साक्षी के लिए आज खुशियों भरा दिन है वो आज बच्चों के साथ बहुत खुश है।

वो आज बच्चों के साथ पतंग उड़ा रही है हमेशा की तरह आज भी उसकी पतंग आसमान की बुलंदियों को छु रही है। बच्चे ये देखकर बहुत खुश है। साक्षी ने आज पीले रंग का सुट पहने हुए है आज वो आसमान से उतरी किसी अप्सरा की तरह दिख रही है। साक्षी को हंसते मुस्कुराते देख उसके भाई बहन और मम्मी भी खुश है।

खुशियों के इस पल में आसमान की बुलंदियों को छुती साक्षी की पतंग किसी ने काट दी। ये पहली बार हुआ था जो किसी ने उसकी पतंग काटी थी। साक्षी हेरानी से उस ओर देखने लगी। दूर अपनी छत पर सुमित खड़ा था वो साक्षी को देखकर मुस्कुरा रहा था। साक्षी की पतंग उसी ने काटी थी।

साक्षी हेरानी से सुमित की तरफ देखने लगी। अंकुर ने साक्षी से कहा मासी मां अब क्या होगा? साक्षी ने अंकुर से कहा डोन्ट वरि बेटा हमारे पास और पतंग है न। आप मायूस मत हो।

फिर साक्षी ने दूसरी पतंग उड़ाई ये पतंग भी आसमान की बुलंदियों को छुने लगी। सुमित ने फिर साक्षी की पतंग को काटने की कोशिश की लेकिन इस बार साक्षी ने सुमित की पतंग को काट दिया। बच्चे सब खुशी से झुमने लगें।

जीत के साथ साक्षी ने सुमित की तरफ मुस्कुरा कर देखा। सुमित को तो जैसे दुनिया भर की खुशी मिल गई हो। हंसते हुए सुमित ने फिर साक्षी की पतंग काट दी। जिन्दगी में पहली बार साक्षी को कोई ऐसा मिला था जो उसकी बराबरी की पहुंच रखता था। पतंग के पेच मिलने के साथ अब दिलों के पेच भी मिलने लगे थे।

ऑफिस आते-जाते वक्त साक्षी ने कई बार सुमित को देखा था। वो इसकी कॉलोनी में अभी हाल ही में शिफट हुआ था। लेकिन आज पहली बार वो सुमित को इतना खुश देख रही थी। और सुमित के साथ भी ऐसा ही था वो भी आज पहली बार साक्षी को हंसता हुआ देख रहा था।
खुशियों के साये में आज का दिन यूहीं हंसते मुस्कुराते बित गया।

शाम को साक्षी खाना बना रही थी। घर की डोर बेल बाजी तो साक्षी ने दरवाजा खोला तो देखा सुमित अपने हाथ में एक पतंग लिये खड़ा है।

उसने कहा आप यहां? मुझे मालुम है साक्षी तुम्हें ये पतंग बहुत प्यारी है। तुम बचपन से इसे अपने पापा के साथ उड़ाया करती थी। बचपन से ये मेरी ख्वाहिश थी कि मैं एक दिन तुम्हारी ये पतंग जरूर काटूगा।

साक्षी हेरानी से सुमित की तरफ देख रही थी। और सुमित के चहरे में अपने बचपन के किसी साथी को पहचानने की कोशिश कर रही थी।

फिर हंसते हुए कहा गोल्डी ये तुम हो? मैं तो तुम्हें पहचानी ही नहीं कितना बदल गये हो तुम। आज तक तुमने मुझे क्यों नहीं बताया हमेशा तो तुम मुझे मिलते थे।

साक्षी मैं तुम्हें ये अहसास दिलाना चाहता था जिस तरह बिन डोरी की पतंग अच्छी नहीं लगती उसी तरह बिना जीवन साथी के जिन्दगी में खुशियों के रंग नहीं आते है। साक्षी मैं तुम्हारी जिन्दगी में यहीं खुशियों के रंग भरना चाहता हूं।

क्या हर मोड़ पर निभाओंगी मेरा साथ? मैं तो जिन्दगी के हर मोड़ पर तुम्हारा साथ निभाने के लिए कब से तैयार हूं। मुझे अपनी जीवन की डोर से बांध लो साक्षी मैं अब और तुम्हारा इंतजार नहीं कर सकता हूं। साक्षी हेरानी से सुमित की तरफ देख रही थी।

सुमित ने एक लाल चुन्नी साक्षी की तरफ की उस के साथ सिन्दूर, महेन्दी, चुडिय़ां थी। उसके पीछे से आकर उसकी मम्मी ने उसके सर पर हाथ रखा। उसने देखा तो उसके सब भाई-बहन पीछे खड़े मुस्कुरा रहे थे।

साक्षी की आंखों में आंसू थे। ये खुशी के आंसू थे। उसने फिर मुस्कुराते हुए सुमित के हाथ से चुन्नी ले ली। और जिन्दगी के हर मोड़ पर सुमित के साथ कदम से कदम मिला कर खुशियों की राह पर चलने को तैयार हो गई।

सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश