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निरमला आज बहुत ज्यादा गुस्से में थी। निलेश के आते ही उस पर बरस पड़ी। मैंने तुमसे कहा था न ये बाबूजी की पुरानी हो चुकी स्कूटर को हम कबाड़े वाले को बैच देते है। लेकिन तुमने मेरी एक नहीं सुनी। जानते हो तुम आज बाबूजी की इस खटारा स्कूटर की वजह से मुझे अपने फ्रेंड के सामने कितने इंसल्ट का सामना करना पड़ा है।

आज किटी पार्टी में मेरी सब फेंड घर आई थी। जब उन्होंने घर के बहार बाबूजी की स्कूटर देखी तो मुझ पर हंसने लगी। वो मिसेज शर्मा कह रही थी। निरमला घर तो बहुत आलीशान बनाया है तुमने बट घर के सामने ये खटारा स्कूटर क्यों रखी है। क्या इससे कोई बेनिफिट मिलता है। अगर ऐसा है तो हमें भी बता दो। और सब हंसने लगे। मिसेज महेता ने हंसते हुए कहा अरे यार मिसेज शर्मा अपने सुना नहीं है क्या चांद में भी दाग होता है।

अब आप ही सोचो निलेश ये कितनी अपमान की बात है। अब आप सुन लों मैं आज अपकी एक बात नहीं सुनने वाली हूं। और अभी कबाड़े वाले को बुलाकर इस स्कूटर को दे दूंगी।

देखों निरमला अपना गुस्से पर काबू करों जो होना था हो गया। अब तुम क्यों इसका गुस्सा बाबूजी की खुशियों पर निकाल रही हो। तुम जानती हो न बाबूजी को इस स्कूटर से कितना प्यार है। माँ की भी कितनी यादे जुड़ी है इस स्कूटर से मां के जाने के बाद बाबूजी वैसे ही अकेले हो गए है। तुम जानती हो इस स्कूटर के साथ बाबूजी मां की यादों के साथ खुश रहते है।

तुम नहीं जानती निरमला जब हम भाई-बहेन छोटे थे। तो बाबूजी ने कितने जतन से इस स्कूटर को खरीद कर लाए थे। और जब वो इस स्कूटर पर माँ को बिठा कर कहीं लें जाते थे। तो माँ बाबूजी की खुशी देखते ही बनती थी।

आज भी तुम देखती हो बाबूजी इस स्कूटर को कितने प्यार से रखते है। और रोज सुबह शाम वो इस स्कूटर पर बैठकर अपने दोस्तों से मिलने जाते है। अब बाबूजी से इतना चलते नहीं बनता है अगर स्कूटर नहीं रही तो वो अपने दोस्तों से मिलने कैसे जाएगें।

निलेश अपने बाबूजी की खुशियों की तुम्हें परवाह है। लेकिन मेरा क्या? मुझे कुछ नहीं सुनना आज ये स्कूटर इस घर में रहेगी या मैं। अगर बाबूजी के दोस्तों को उनसे प्यार होगा तो वो खुद उनसे घर आकर मिल लेगें। अब तुम ही सोच लों तुम्हें ये स्कूटर प्यारी है या मैं। प्लीस निरमला थोड़ा धीरे बोलों बाबूजी पास के कमरे में है। अच्छा तो मैं समझ गई अब मैं जा रही हूं अपने घर और कभी नहीं आऊंगी।
प्लीस निरमला मेरी बात समझने की कोशिश करों। मुझे कुछ नहीं सुनना। अच्छा जैसी तुम्हारी मर्जी।

अब निरमला के मन की हो गई थी। उसने तुरंत कबाड़े वाले को बुलाया और स्कूटर उसे दे दी। निलेश के बाबूजी पास ही खड़े सब कुछ देख रहे थे। उनकी आंखों में आंसू थे। आज वो अपने ही अपनो के आगे इतने मजबूर थे के चाहकर भी न कुछ कह सकें।

निलेश अपने बाबूजी का उदास चहेरा देखकर कबाड़ेवाले को अलग बुलाकर कहा देखों ये कुछ पैसे रख लों और इस स्कूटर को सभाल कर रखना अभी मेरी वाईफ गुस्सें में है। इसलिए मैं तुम्हें इसे ले जाने दे रहा हूं बाद मैं खुद ले जाऊंगा। इससे मेरे मां-बाबूजी के अरमान जुड़े है।

दिन यूहीं उदासियों के साये में गुजरते जा रहे थे। अपनी स्कूटर के बीना निलेश के बाबूजी ने कुछ दिन बहार अपने दोस्तों से मिलने गये। लेकिन पैरों में तकलीफ होने की वजह से घर से बहार जाना बंद हो गया। और बाबूजी और ज्यादा उदास रहने लगें धीरे-धीरे वो बीमार हो गए। अब तो वो बमुश्किल अपने रूम से बहार आते।

जैसे ही दिन ज्यादा होने लगे एक दिन निरमला ने देखा के पुरी कॉलोनी के छतों पर कई तरह के पंक्षी बैठे है। और उसका तो पुरा छत ही पक्षियों से भरा हुआ है। और मैन गेट पर भी पक्षी बैठे है। जिसमें तोते, कबूतर, मैना, गौरैआ कई तरह की चुडिय़ां है। और सब अपनी मधुर अवाज में अवाज लगा रही है। जैसे किसी को बुला रही हो।

निरमला हर तरह से उन्हें भगाने की कोशिश की लेकिन वो जाने का नाम ही नहीं लेती। जब निलेश की बाबूजी को उन पक्षियों की अवाज लगी तो वो धीरे से अपने कमरे से बहार निकल कर आये। उनको देखकर सब पक्षी उनके पास मडराने लगे। कुछ आकर उनके कंधों पर हाथों पर बैठ गये। उन्होंने देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो पुछ रहे हो। आप कैसे हो इतने दिनों से हमसे मिलने क्यों नहीं आये?

सारे कॉलोनी के लोग भी हेरानी से उन पक्षियों की तरफ देख रहे थे। और कह रहे थे। सचमुच ऐसा लग रहा है। श्रीकान्त जी से ये पक्षी कितना प्यार करते है।

श्रीकान्त जी ने निरमला से कहा बहु बेटा तुमने ही कहा था न अगर मेरे दोस्तों को मुझसे प्यार होगा तो वो खुद मुझसे मिलने घर आ जाएगें। बेटा यही है मेरे दोस्त जिन्हें मिलने और दाना खिलाने मैं रोज सुबह शाम जाता था।

लेकिन बेटा तुम देख रही हो ये मेरे दोस्त कितने सारे है। और इनका मन कितना साफ है मेरे लिये। ये आज सुबह से कॉलोनी में आये है। लेकिन देखों बिल्कुल गंदगी नहीं पहलाई है इन्होंने। वो लोग थे जो तुम्हारे घर आये जिन्होंने अपने मन की सारी गंदगी तुम्हारे घर में फैलाकर चले गये।

ये तो बेजुबान है बेटा एक दिन इन्हें फिर कोई और आसरा मिल जाता। जहां ये अपना पैट भर सकते थे। लेकिन ये इनका अपनापन था मेरे प्रति जो ये इतनी दूर से मुझे ढुढते हुए यहां आ गये।

फिर निरमला ने अपने किचन से दाना लेकर आई और श्रीकान्त जी को देते हुए कहा मुझे माफ कर दिजिए बाबूजी मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। आप मेरे पिता समान है फिर भी मैंने अपनी खुशी के लिए अपका दिल दुखाया।

श्रीकान्त जी ने निरमला के हाथ से दाना लेते हुए कहा नहीं बेटा गलती इंसान से ही होती है। माफी की कोई बात नहीं। और उन्होंने पक्षियों दाना डाला। लेकिन एक भी पक्षी ने दाना नहीं खाया सब वापस लोट गये। जैसे वो ये कह रहे हो हम यहां दाना चुगने नहीं आये थे। आपसे मिलने आये थे।

फिर निलेश के आते ही निरमला सब कुछ निलेश से कहा और उससे भी माफी मांगी। फिर निलेश ने जाकर कबाड़ेवाले से बाबूजी की स्कूटर वापस ले आया। अपनी स्कूटर को देखकर श्रीकान्त जी का चहेरा फिर से खुशियों से खिल गया।

दूसरे दिन सुबह श्रीकान्त जी रोज की तरह दाना लेकर उस जगह गए जहां वो रोज दाना डालते थे। श्रीकान्त जी के दाना डालते ही बहुत सारे पक्षी आकर दाना खाने लगे। और कुछ श्रीकान्त जी के कंधों और हाथों पर आकर बैठ गए। श्रीकान्त जी उनसे अपने बच्चों की तरह बाते कर रहे थे। पक्षी भी अपनी मधुर अवाज में उनकी बातों का जबाब दें रहे थे।

आज पहली बार निलेश और निरमला दूर खड़े ये सब देख रहे थे। और महसूस कर रहे थे। असली सच्चा प्यार क्या होता है?

सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश