कभी जलते हुए चिरांगों को यूं छेड़ा नहीं करते,
उजालों से भरी दुनिया में यूं अन्धेरा नहीं करते,
है बहुत अरमान जो फूल बनके महकने लगेगें जिन्दगी की राहों में,
उम्मीदों की कलियों को यूं खिलने से पहले तोड़ा नहीं करतें,
तन्हाई भी जिन्दगी जीने का अंदाज हुआ करती हैं,
जख्मों से दिल की बात हुआ करती है,
अब करके यादों से दिललगी,
जख्मों की संगदिली पर यूं रोया नहीं करते,
कदम-दर-कदम चलने की बात हुआ करती हैं,
रू-ब-रू मंझील से मुलाकात हुआ करती है,
सोचकर मुस्कील पथरेली राह इन्हें
यूं मंझील से मुह मोड़ा नहीं करते,
बैचेनी में निदों से दामन को चुराना,
अच्छा नहीं हैं बैखुदी से दिल को लगाना,
इस तरह करके मायूसी से दोस्ती,
पलको से यूं खाव्वों को समेटा नहीं करते,,
सैयद शबाना अली