इंसान के लिए प्रकृति का साथ मां की गौद की तरह होता है। जहां आने के बाद इंसान को चेन और सुकुन मिलता है। कुदरत की तरफ से हर इंसान के लिए शुद्ध हवा तोफे के रूप में दी गई थी। ये वो अनमोल तोफा था जिस पर बिना किसी भेदभाव सभी का हक था। लेकिन आज देखा जाये तो इंसान ने अपनी हटधर्मी की वजह से ये हक भी खो दिया है। अपनी जरा सी सुविधाओं के लिए इंसान ने प्रकृति को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया। जिसका ये असर देखने को मिला के आज इंसान शुद्ध हवा के लिए तरस रहा है। शुद्ध हवा के अभाव में अपनी सेहत को कई नुकसान पहुंचा रहा है।
इंसान आज अपनी सुविधा के लिए पेड़ों को जिस तेजी से काट रहा है। उससे प्रकृति में वायु प्रदुषण बड़ता जा रहा है। जिससे प्रकृति में शुद्ध हवा की कमी होती जा रही है।
इंसान जन्म से ही पेड़ों पर निर्भर है क्योंकि पेड़ इंसान को जीवन जीने के लिए ऑक्सिजन प्रदान करते हैं जिसके बिना शायद इंसान जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। एक दौर था जब पृथ्वी पूरी जंगलों से भरी हुई थी। लेकिन अगर आज देखें तो कुछ गिने-चुने ही जंगल मौजूद है। इसका ये असर हुआ आज शुद्ध हवा की कमी हो गई क्योंकि जितनी पेड़ों कमी होगी उतना ही शुद्ध हवा की कमी होगी।
प्रकृति ने इंसान को उसकी सुविधा का सारा समान प्रदान किया लेकिन इंसान ने प्रकृति की इस देन का फयदा तो उठाया लेकिन प्रकृति के साथ इंसाफ नहीं कर सका। आज इसका ही फल है इंसान शुद्ध हवा पाने के लिए तरस रहा है।
पहले का इंसान प्रकृति के साथ रह कर जिन्दगी जीता था। लेकिन आज का इंसान सिर्फ अपनी सुविधाओं को देखकर आगे बड़ता है। अब प्रकृति को कितना नुकसान हो रहा है ये वो नहीं सोचता आज इंसान ने अपने लिए बड़े-बड़े महल बना लिये कई कारखाने बना लिए गाड़ी मोटरों का भण्डार लगा लिया लेकिन ये नहीं सोचा इस सब में प्रकृति का कितना नुकसान हो रहा है। चारों तरफ से प्रदुषण के अटेक से प्रकृति अपना सुन्दर अस्तित्व खोती जा रही है। इसका असर दिन प्रतिदिन आ रहे प्रकृति बदलावों से इंसान महसूस भी कर रहा है। लेकिन फिर भी वो अपने कदम पीछे नहीं कर रहा है।
पहले इंसान घर बनाता था तो घर के आंगन में कई पेड़ लगाता था। जिनपर पक्षियों का बसेरा होता था। लेकिन आज इंसान बड़ा घर और बड़ा घर की आस में अपने पूर्वजों के द्वारा लगाये पेड़ों को भी बड़ी लपरवाही से काट रहा है। जितनी सुविधाओं की आस में इंसान जिन्दगी जी रहा है उतना ही वो अपना और प्रकृति का नुकसान करते जा रहा है।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन इंसान के पास सांस लेने के लिए शुद्ध हवा की कमी हो जाएगी। अभी भी वक्त है इंसान को प्रकृति में हो रहे बदलावों से सबक ले लेना चाहिए वरना किसी दिन प्रकृति अपने क्रोद्ध रूप में आ गई तो इंसान को कहीं भागने का मौका भी नहीं मिलेगा।
वक्त रहते इंसान को ये सोच लेना चाहिए। अपनी सुविधाओं के साथ-साथ प्रकृति का भी ध्यान रखे। अगर प्रकृति ने इंसान को मां की गौद की तरह आसरा दिया है तो उसे भी प्रकृति को एक मां की तरह प्यार देना चाहिए।
सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश