कोई फरियाद न कर सका मैं,
दुनिया के दिये जख्मों से न लड़ सका मैं,
यू अजमाती चली गई मुझको जिन्दगी मेरी,
मौत से भी न वफा कर सका मैं,
लाकर खड़ा कर दिया जिन्दगी ने ये किस मुकाम पर,
अपने ही अरमानो की हिफाजत न कर सका मैं,
बहुत कुछ छुटा था यू जिन्दगी में,
चहाकर भी न सभाल सका मैं,
दुनिया की जिद के आगे सर झुकाता चला गया मैं,
यू खमोश रहा लफजों से बगाबत न कर सका मैं,
यू सताती रही जिन्दगी की कठनाईयां मुझे,
चहाकर भी न कदमों से चल सका मैं,
मेरे वाजूद को यू मिटाते चले गये लोग,
खुद अपने लिए कुछ नहीं कर सका मैं,
खोने के लिए नहीं कुछ बचा था पास मेरे,
जख्मी दिल के जख्मों की परतो को भी न सहज सका मैं,
यू पल-पल तड़पता रहा
जिन्दगी में गमों से न बच सका मैं,
मैं तो आज भी मुस्कुराना चाहता हूं
ये किस बोज में दब गया मैं,
सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश