हूं मैं एक ख्वाव जिसे तुम अपनी
पलकों में छुपाकेे रखना,
मोतियों सा बिखरना हैं मेरी आदत में सुमार,
तुम पलकों के सिपियों को दवाकर रखना,
फूलों की तरह मैं खिलता हूं निदों के बाग में,
खिलकर मुरझाना है मेरी फितरत में सुमार,
तुम जिन्दगी में अपनी मेरी रंगत मेरी खुश्बू
को बचाकर रखना,
हूं मैं धुआ भी जो जज्बातों के चिरांगों से उठता हूं,
बनके मिटना है, मेरी उल्फत में सुमार,
तुम मेरे अक्स को लफजों में अपने,
छुपाकर रखना,
हूं मैं एक ख्वाव जिसे तुम अपनी
पलकों में छुपाकेे रखना,