यू छुपाएं थे हम दर्द को दिल में अपने,
वो दिल में रह कर भी दर्दे दिल समझ नहीं पाए,
हर बार जख्मों से टकराती रही धडक़ने हमारी,
लेकिन कहा-कहा लगी है चोट वो समझ नहीं पाए,
शबों रोज उनकी यादों के साये में,
आंसूओं से लिखी जाती रही दास्ताने दर्दे दिल,
लेकिन कितनी है जख्मों से उल्फत हमें वो समझ नहीं पाए,
टुट के बिखर गए थे हम मुरझाएं हुए फूलों की तरह,
महकती रही हमारी खुश्बू से उनकी दिल की दुनिया,
कितनी है मोहब्बत वो समझ नहीं पाएं