सितम ये हम पे बहारों ने किया,
अरमानों का गुलशन उजड़ गया,
फासलों ने ये हम से कहा,
हां खो दिया बस खो दिया…
दिल को अब हम समझाने लगे हैं,
हकिकत पे से परदे हटाने लगे हैं,
सच जब हमारे सामने आया,
तो जिन्दगी ने ये राज बताया,
हां खो दिया बस खो दिया…
रूठी हुई खुशियों को अब मनाना नहीं,
और कोई अरमान अब सजाना नहीं,
उम्मीदों के चिरांगों ने बुझते हुए बताया,
हां खो दिया बस खो दिया…
जज्बात अब लफजों की कैद से आजाद हैं,
जख्मों की नई सलाखों में गिरफतार हैं,
गमों ने अब एक नई मंझील पाई हैं,
सालों बाद अब हमें ये बात समझ में आई हैं,
हां खो दिया बस खो दिया…
किसने कहा था अब जिन्दा है हम,
अपने ही आप पर शर्मीदा है हम,
मौत अब भी बाद में आनी हैं,
लेकिन जिन्दगी की अब ये ही कहानी हैं,
अहसास अब ये न आई मौत ने कराया,
हां खो दिया बस खो दिया…