खामोशियों में हर दर्द को छुपाते रहे हम,
रोता रहा दिल और मुस्कुराते रहे हम,

गमों की संगदिली दिल को जख्मी करती रही,
लहू जिगर का आंखों से बहेता रहा,

और लफजों के फूलों से,
जख्मों के सुरागों को दबाते रहे हम,

कुछ नहीं बचा अब जिन्दगी मेें हमारे पास,
रंग न ला सकी जिन्दगी में कोई मौसमों की बहार,

खुद सुनते रहे दिल की और दिल को अपने यूही समझाते रहे हम,
आधियां यू गमों की चलने लगी,

खुशियों की कलियां खिलने से पहले बिखरने लगी,
चाह के भी हम समझोता गमों से कर न सके,

बुझते रहे यूही उम्मीदों के चिरांग,
और बार-बार जलाते रहे हम,

सैयद शबाना अली