जोड़ी थी जिससे हमने अपनी खुशियां,
वो बागे बहारा उजड़ गया…

कोई रंग बाकी न रहा हर रंग हाथों से बिखर गए,
कैसी चली ये गमों की हवा,

वो बागे बहारा उजड़ गया…
लाखों उम्मीदों की कलिया थी,

अरमानों के खिले फूल भी थे सारे,
अचानक हुआ था हमें अहसास,

कुछ नहीं रहा हमारे पास,
वो बागे बहारा उजड़ गया…

चाह कर भी हम कुछ कर न सके,
मजबूरियों से अपनी लड़ न सके,

हम खमोशी में शिसकते ही रहें,
वो बागे बहारा उजड़ गया…

ख्वाव सारे हमारे बिखर गए,
रंग खुशियों के किधर गए,

हम आंसू बहाते रहें,
वो बागे बहारा उजड़ गया…

अब यादें बस तड़पाएगी हमें,
हर पल रूलाएगी हमें,

अब कुछ नहीं कर पाएगें,
हम खुद के लिए क्योंकि

जोड़ी थी जिससे हमने अपनी खुशियां,
वो बागे बहारा उजड़ गया…