ऐ खामोशियों मुझे अपना बना लो…
हूं फूल में बैरंग बहारों का,
मुझे अपने रंग में छुपा लो,
है मेरे जफजों पर मुकमल गमों का अंधेरा,
मुमकिन नहीं है, हो फिर खुशियों भरा सबेरा,
है तुम्हें जा निसार तन्हाईयों की कसम,
इन लम्हों में मुझे भी डुबा लो,
ऐ खामोशियों मुझे अपना बना लो…

मैं बिखरते ही जा रहा हूं सौर भरी इस दुनिया मैं कही,
है तुम्हारा हक तुम मुझे ढुढ लेना वही,
इस दर्द के दरिया को तुम खगालों,
ढुढ कर मुझको इसमें से निकालों,
जब मिल जाए तुम्हें जो मेरा वाजूद है वाकि,
तो रू-ब-रू तुम उसे अपने बिठा लो,
ऐ खामोशियों मुझे अपना बना लो…

आसुंओं से मेरा रिस्ता पुराना है,
शबों रोज उनका आंखों में आना जाना है,
है ये मेरी अदाते वफा दूर नहीं रह सकता हूं मैं इन से सदा,
है तुम्ही में इनका मुकमल बसेरा,
तुम साथ दो तो बन जाए काम मेरा,
अब मेरा साथ तुम ही निभा लो,
ऐ खामोशियों मुझे अपना बना लो…

सैयद शबाना अली