सोचा था कुछ तो बदल जाएगी जिन्दगी हमारी,
लेकिन फिर आंसूओं में ढल गई जिन्दगी हमारी,
क्या कुछ नहीं किया हमने जमाने के लिए,
लेकिन संगदिल जमाने की संगदिली पर,
निसार हो गई जिन्दगी हमारी,
और क्या-क्या सितम सहने के लिए चल दिये है हम जिन्दगी की राहों पर
चिंरागों की तरह तो जल गई है जिन्दगी हमारी,
कहीं इन तुफानों में मर न जाए हम,
पल-पल तो मौत से लड़ रही है जिन्दगी हमारी,
चले जा रहे है नट की तरह सासों की कच्ची डोर पर,
ऐसे ही पल-पल अपनी ही सासों पर
मिटती जा रही है जिनदगी हमारी,
सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश