बचपन बहुत मासूम होता हैं उसे जिस सांचे ढाल दो वो वैसा ही रूप ले लेता हैं। इंसान का ये वो रूप होता है जो हर दर्द को हंसते हुए सह जाता हैं। लेकिन गरीब और भूख एक ऐसा खंजर होती है जो इस मासूम दिल को भी चीर कर रख देती है। फिर जो बचपन भूख और गरीबी का सामना करता है। वो अपनी पेट की इस आग को बुझाने के लिए अपने आप को ऐसे हाथों में सोफ देता है जो निर्दय और बेरहम होते हैं। फिर यहीं से शुरू होती है। बचपन की मासूमियत के संघर्ष की कहानी जिसमें बचपन हर दिन सिर्फ जलता रहता है। और इसे ही सब लोग बाल मजदूर कह देते है। हमारे देश में देखें तो ऐसे लाखों बच्चें मिल जाएगें जो कही न कही बाल मजदूर के रूप में काम कर रहें होते हैं।
ये सोचने वाली बात हैं उन इंसानों की सोच कैसी होती है जो खुद के जरा से फायदें के लिए मासूम बच्चों से बाल मजदूरी जैसा काम कराते हैं। मासूम बच्चें तो गरीब और भूख से बेहाल होते है इसलिए लोग उनसे पैसे के लिए जो काम करने को कहते हैं। वो कर देते है। लेकिन वो लोग कैसे होते है जो अपने कारखानों में या दूसरी जगहों पर मासूम बच्चों से महेन्त का काम करवाते हैं।
इन मासूम बच्चों से उनका पुरा भविष्य छीन लिया जाता हैं। स्कूल में पढऩे की उम्र में ये बच्चें सडक़ों पर रेता गिट्टी ईटा उठाते नजर आतें हैं। तो कही ये मासूम बच्चें छोटे-छोटे से कमरों में बने कारखानों में बैठकर अपनी जिन्दगी के बीस घंटें काम करते हैं। कही इन से खानों ूमें घंटों काम कराया जाता है। हर जगह देखा जाता हैं। इन मासूम बच्चों से उनकी क्षमता से ज्यादा काम लिया जाता है। और मासूम बच्चें होने के कारण हर तरह से इनका शोषण किया जाता है।
इनकों बाल मजदूर के तौर पर इसलिए काम दिया जाता है। ताकि छोटे होने के कारण उन्हें कम पैसे दिये जा सकें कम पैसों में काम ज्यादा कराया जाता है। बेचारे बेवस और मासूम बच्चें अपनी गरीबी लचारी की भेंट चढ़ जाते हैं।
बच्चों को एक ऐसे महौल में अपनी जिन्दगी जीने का अधिकार हैं। जहां वो सम्मान के साथ अपनी जिन्दगी जीते हुए आगे बढ़ सकें और देश का एक अच्छा नागरिक बन सकें। उन्हें शिक्षा के साथ-साथ वो सारे अधिकार दिये जाने चाहिए। जिसके सायें में पल कर वो आगे चल कर देश के लिए एक जिम्मेदार नागरिक बन सकें।
लेकिन दुर्भाग्यवस हमारे देश में बच्चों की एक बड़ी आबादी अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित है। और अभावों के साथ संघर्ष भरा जीवन जी रहें हैं। एक ऐसा जीवन जहां इन मासूम बच्चों को स्कूल जाने और खेल कुद कर अपनी जिन्दगी खुशियों के साथ जीने की उम्र में दो वक्त की रोटी के लिए कभी कड़ी धुप में तो कभी ठंड से सर्द रातों में महेन्त मजदूरी कर के अपना पेट भरना पड़ रहा है। इन में से बहुत से बच्चे ऐसे है जो 10 से 12 साल की उम्र में अपने पुरे परिवार का पेट पाल रहें हैं। क्या कोई सोच सकता है इन मासूमों को कोन ने इतना मजबूर किया आज वो पल -पल अपनी जिन्दगी को कारखानों की भट्टीयों में जला रहें हैं।
कहने को तो हम उस देश के नागरिक है जहां के अला पद पर आसीन लोग हर दिन करोड़ों रूपये तो बस अपने कपड़ों पर खर्च कर रहें है। और लाखों रूपये से कम का खाना नहीं खाते है। ऐसे देश का भविष्य कहलाने वाले मासूम बच्चों का ये हाल ये के वो एक वक्त खाना खाते है। तो दूसरे वक्त का नसीब नहीं होता हैं। फिर अगले दिन वो मासूम बच्चें अपने सरों पर किसी खदान में पत्थर उठाएं नजर आ जाते है। ये मासूम अपने नाजूक नाजूक हाथों से अपने अभिभावकों के साथ पत्थर तोड़ते मिल जाएगें। भूख से पेट अन्दर चिपका हुआ है। चहरे पर साफ बेवसी नजर आ रही है। मेले से कपड़ें पहने हुए ये खुवसूरत फूल कही धुप में आपको मुरझाते हुए मिल जाएगें। या किसी कारखानों में अपने हाथों से कुछ बनाते हुए मिल जाएगें।
दुनिया में हर इंसान अपने बच्चों की खुशी चाहता हैं। और उनके सपनों को पुरा करने के लिए हर संभव काम करता हैं। लेकिन जिन बच्चों को हम इस तरह से बाल मजदूरी करते देखते है। क्या वो किसी के जिगर के टुकड़े नहीं है। जो हमे उनपे रहम नहीं आता है। कही-कही तो इन बच्चों को मारा पिटा भी जाता हैं। मासूम होने के नाते उनपर अत्याचार किये जाते है।
हमारे लिये ये दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि विश्व भर में हमारे देश में बाल मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा है। और इन मासूमों को काम से हटाना और उनका नए सिरे से पुर्नवास करना हमारे देश की सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। सरकार को ऐसे बच्चों शिक्षा की तरफ लाने की कोशिश करना चाहिए और उनके अभिवावकों को भी समझाना चाहिए स्कूल जाने की उम्र बच्चों काम कराने पर सजा का प्रवधान होना चाहिए। कारखानों बच्चों से इसलिए काम लिया जाता है। क्योंकि बच्चों व्यस्कों के मुकाबले 12 से 16 घंटे लगातार काम करते है। और उन्हें इसके बदले पैसे भी कम दिये जाते हैं। और उन्हें आसानी से दवाया भी जा सकता है।
अपनी जरा सी लालच में ये निर्दय लोग मासूम बच्चों से उनका बचपन छीन लेते है। उनके पढऩे के अधिकार को छीन लेते हैं। ये मासूम बच्चें बचपन से महेन्त करने के कारण जल्दी बीमार हो जाते हैं। जिससे उनकी सहेत से खिलवाड़ होता है। खेलने की उम्र ये मासूम बच्चें इतनी महेन्त का काम करते है आगे चलकर बीमार हो जाते हैं। बच्चें बहुत खतरनाक और अस्वस्थ दशाओं में घंटों काम करते है। जिससे उनका शरीरिक विकास रूक जाता है।
वैसे तो हमारे देश में बाल मजदूरी निषेध एवं विनियमन अधिनियम 1986 में ही लागू किया जा चुका हैं। इस अधिनियम की धारा 14 के अनुसार ऐसे व्यक्ति जो बच्चों को किसी जोखिम भरे काम में नियुक्त करते हैं। उन्हें कम से कम एक वर्ष की सजा और 20,000 तक के जुर्माने की व्यवस्था की गई हैं।
लेकिन ये बात सोचने वाली है। बाल मजदूरी को लेकर अब तक हमारे देश कई कानून बनाएं हैं। लेकिन अब तक उनपर सही तरह से अमल में नहीं लाया गया हैं। अगर लाया गया होता तो आज हमारे देश में दिन प्रतिदिन बाल मजदूरों की संख्या बढ़ती नहीं बल्कि कम होती।
आज हमारे देश की मौजूदा सरकार को इस और गंभीरता से विचार करना चाहिए। बाल श्रम को रोकने के लिए हर राज्य और जिलों में शक्ति से कानूनों का पालन किया जाना चाहिए। जो लोग बाल श्रम करवाते हैं। उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए। ताकि हमारे देश से बालश्रम रूपी इस अभिशाप को खत्म किया जा सकें। और देश के भाविष्य कहलाने वाले बच्चों को इससे सुरक्षित किया जा सकें।
सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश