कोई फरियाद न कर सका मैं…
कोई फरियाद न कर सका मैं, दुनिया के दिये जख्मों से न लड़ सका मैं, यू अजमाती चली गई मुझको…
कोई फरियाद न कर सका मैं, दुनिया के दिये जख्मों से न लड़ सका मैं, यू अजमाती चली गई मुझको…
यू खाली हाथ चला था मैं, पीछे बहुत कुछ छोड़ चुका था मैं, यादे बस साथ थी तेरी, तुझे तो…
अल्लाह पाक की रहमतों के साये में, आज फिर दिल मुस्कुराया, रमजान आया…रमजान आया… इन्तजार की घडिय़ा अब लफजों में…
दुनिया की भीड़ में तेरे खो जाने का डर नहीं, ऐ जिन्दगी तुझसे दूर हो जाने का डर नहीं, तकदीर…
न लगी थी चोट दिल पर , जख्म तो निगाहों से हुए थे, रू-ब-रू आंधियों से थी सासे हमारी, यूं…
मैं तेरे ख्यालों में कहीं खो न जाऊं, जिन्दगी में यूं गुम हो न जाऊं, मुझे सभालने वाला कोई नहीं…
जो खो चुका है उसको पाने का ईरादा न कर, जिन्दगी जीना मुश्किल न हो जाए, जिन्दगी से ऐसा वदा…
यू चला था मैं अपने ही कदमों की आहट न सुन सका मैं, रूठी हुई निदों को ढुढऩे की कोशिश…
झलक जाए जब आंखों से तो ये एहसास होता है, आंसूओं में भी लफज छुपा होता है, बहुत बेकरारी में…
सोचा था कुछ तो बदल जाएगी जिन्दगी हमारी, लेकिन फिर आंसूओं में ढल गई जिन्दगी हमारी, क्या कुछ नहीं किया…