बूढ़े ढाबे वाले ने सैनिकों से खाने के पैसे नहीं लिए, लेकिन कुछ महीनों बाद, जब वे ढाबे पर आए, तो उन्होंने कहा कि जीवन में कुछ जगहें ऐसी भी होती हैं जहाँ न सिर्फ़ भूख मिटती है, बल्कि हर निवाले से इंसान के दिल को संतुष्टि मिलती है। ऐसी ही एक जगह थी हाईवे पर एक छोटा सा ढाबा। ढाबे के मालिक रामकिशन बाबा थे। वे लगभग 70 साल के थे, उनका चेहरा झुर्रियों से भरा था। उन्होंने सफ़ेद धोती कुर्ता पहना था, सिर पर एक मुरझाई हुई पगड़ी थी। उनकी आँखों में थकान साफ़ झलक रही थी। लेकिन उनमें एक अजीब सी चमक थी। मानो उन आँखों ने बहुत कुछ देखा हो, पर कभी उम्मीद नहीं छोड़ी हो। ढाबा बहुत सादा था। लोहे की नालीदार छत, पुरानी लकड़ी की कुर्सियाँ, मिट्टी के चूल्हे से उठती सुगंध और धुआँ। ट्रक ड्राइवर और रास्ते से गुज़रने वाले ग्रामीण अक्सर यहाँ खाना खाने के लिए रुकते थे। लेकिन बाबा का दिल तब सबसे ज़्यादा खुश होता जब वर्दी पहने सैनिक कहीं से सड़क पर आकर रुक जाते। उस शाम, सड़क पर धूल उड़ रही थी और सूरज ढलने वाला था। तभी कुछ थके हुए सिपाही ट्रक से उतरकर ढाबे की ओर चल पड़े। उनकी वर्दियाँ धूल से सनी हुई थीं। उनके चेहरे पसीने से तर थे। एक ने मुस्कुराते हुए कहा, “बाबा, क्या मुझे कुछ खाने को मिल सकता है?” बाबा का चेहरा खिल उठा। “इधर आओ, बेटा, इधर आओ। यहाँ तुम्हारे लिए हमेशा जगह है।” बाबा अपने बूढ़े पैरों को घसीटते हुए आटा गूंथने लगे। चूल्हे पर रोटियाँ पकने लगीं।

दाल की खुशबू हवा में फैल गई। जल्द ही, मिट्टी के प्यालों में चाय, प्याज और हरी मिर्च के साथ गरमागरम खाना परोसा गया। सिपाही भूख से तड़पते हुए खाना खाने लगे। खाते-खाते एक ने पैसे बढ़ाकर पूछा, “बाबा, कितने के हैं?” बाबा ने हाथ जोड़ लिए। “बेटा, पैसे माँगना मेरा अपमान है। तुम अपनी जान जोखिम में डाल रहे हो। यह खाना मेरा है। एक पिता की ओर से अपने बेटों के लिए।” उनकी बात सुनकर सिपाही खड़े हो गए। सबने बाबा को सलाम किया और कहा, “जय हिंद बाबा।” उस पल बाबा की आँखें आँसुओं से भर आईं, पर चेहरे पर एक संतुष्टि भरी मुस्कान थी। दिन यूँ ही बीतते गए।

सिपाही अपनी ड्यूटी पर लौट गए, बाबा अपने रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो गए। लेकिन उनके इस छोटे से काम ने जवानों के दिलों पर एक अमिट छाप छोड़ दी। किसने सोचा था कि आने वाले दिनों में यही रिश्ता, यही आत्मीयता बाबा की जान बचा लेगी। रात हाईवे पर काले कपड़े की तरह छा गई। माहौल अचानक अजीब तरह से बेचैन हो गया। बस झींगुरों की चहचहाहट और कभी-कभार ट्रकों के गुजरने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। रामकिशन बाबा ने सराय के बाहर एक मिट्टी का दीया जलाया और रसोई में आखिरी आग जलाई। तभी चार-पाँच बदमाश मोटरसाइकिलों पर आ धमके। उनके हाथों में…