Why the present government could not become the savior of the common peopleEditorial

आज हम गर्व से कहते घुम रहे है। भारत देश विकास की रहा पर आगे बढ़ रहा है। लेकिन जमीनी हकीकत देखने जाओं तो सिर्फ हवाओं के महल बने हुए है। और कुछ नहीं है। विकास तो दूर-दूर तक नजर नहीं आता है। सब या तो कगजों पर सीमित रह गया है या बातों के हवाई किलों में कहीं खो गया है।

हाँ देश में अगर कुछ देखने को मिल रहा है तो वो विकास के नाम पर गरीबों की जिन्दगी से हो रहा खिलवाड़।
वर्तमान सरकार को इस बात का अहसास ही नहीं है। भारत देश गरीबों और किसानों का देश है। जब तक गरीब और किसानों का विकास नहीं किया जाएगा। देश का विकास असंभव है।

लेकिन आज की सत्तारूढ सरकार का एक काम नजर आ रहा है। देश से गरीबी क्यों हटाओं गरीबों को ही हटाओं न? न उनकी हस्ती रहेगी न कोई कहेगा भारत देश में गरीबी का आंकड़ा बड़ रहा है। न देश में कोई गरीब जिन्दा रहेगे न ही कोई गरीबों के विकास की बात करेगा। गरीबों के खुन से सजा हुआ सत्ता का ताज पहेन कर हम अराम से विदेशों की शेहर करेगें।

अब कोई विदेशी मेहमान हमारे देश में आयेगा तो हमें बड़े-बड़े बैनर लगा कर गरीबों के घरों को छुपाना नहीं पड़ेगा। हम गरीबों के घर दुकाने कुछ नहीं छोड़ेगे सब मिट्टी में मिला देगे तो गरीब वैसे ही भुखा प्यासा मर जायेगा। मरे भी तो हमको क्या? कहां हम उससे पुछने जाते है? जब उसका घर और करोबार हम मिट़्टी में मिला चुके उसके बाद वो उसके मासूम बच्चे क्या खा रहे है? बिमार माँ-बाप कैसे जिन्दा है? वहां रही दुनिया अजब सोच के हामी है हम?

पहले की सत्तारूढ सरकार में गरीबों के विकास की बात कहीं जाती थी। उन्हें रहने को घर और करोबार करने के लिए जमीन दी जाती थी। ताकि गरीबों का विकास हो सकें और साथ में देश का भी विकास हो सकें।

लेकिन आज के सिहासत पर राज करने वालों की सोच विपरीत हो गई है। आज ये लोग देश के विकास और सौन्दर्यकरण के नाम पर गरीबों के घर मकान दुकान सब तोड़ दें रहे है। गरीबों के लिए कोई जिन्दगी जीने का रास्ता ही नहीं छोड़ रहे है। हम देश के विकास के खिलाफ नहीं है।

लेकिन क्या देश का ऐसा विकास और सौन्दर्यकरण जरूरी है जो मासूम बच्चों से उसके सास लेने तक का हक छीन लें । कितनी गीर गई है हमारी सोच क्या अब भी कोई कहेगा इंसानियत हम में जिन्दा है? नहीं बिल्कुल नहीं।

हम तो मासूम बच्चों के लिए दानव बनकर उनकी जिन्दगी लिल रहे है। या यू कहे अपनी सरकार की अन्दर की कमजोरियों को छुपाने के लिए हम देश के विकास के नाम पर लोगों की हस्ती मिटाने की कोशिश कर रहें है ताकि हमारे राज में जो कमिया देश में व्याप्त हो गई है।

उस पर किसी का ध्यान न जाये। या यूं कहे हम गरीबों की हस्ती को मिटा कर अमीरों की तिजौरियां भरने में लगे। ताकि उनके पैसों के बल पर हम फिर से देश के शासन पर राज कर सकें।

वर्तमान सरकार हर जगह ये दावा करती फिर रही है। हम युवाओं को रोजगार के सुनहरे अवसर उपल्बध करा रहे है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है। आज देखने मिल रहा है यहीं सरकार 50 से 60 साल से जो लोग जिस जगह पर अपना करोबार करके अपने घर की रोजी रोटी चला रहे है। और इतने सालों से सरकार को टैक्स भी दे रहे है उनसे बड़ी बेरहमी से उनका रोजगार छीन कर उन्हें बेरोजगार कर रही है। दुकाने घर सब विकास के नाम पर तोड़ दिये जा रहे है। लेकिन देखने जाओं तो देश का विकास कहीं नजर नहीं आ रहा है।

एक जगह विकास जरूर नजर आ रहा है। हम जब से सत्ता के सिंहासन पर आसीन हुए है। तब से ही हम घर में बैठे हुए लाखों रूपये यूहीं डकार जा रहे है। लाखों के कपड़े पहनकर विदेशों में घुमने पर अपने देश का पैसा बर्बाद कर रहे है।

वो गरीब जिसका हमने एक महीने पहले देश के विकास के नाम पर जिनका घर तोड़ चुके है रोजगार छीन चुके है। क्या कभी हमने उनसे जाकर ये पुछने की कोशिश की है वो गरीब आज अपने बच्चों को इस मेहंगाई के दौर में क्या खिला रहा है? या खुद कुछ खा पा रहा है कि नहीं? क्या यहीं हमारी नजरों में हमारे देश का विकास है जो देश के नगरिकों को तिल-तिल कर मरने पर मजबूर कर रहा है।

आज देश के विकास के नाम पर हम क्या कुछ नहीं कर रहे है। अभी कुछ महीने पहले हमने देश के सौन्दर्यकरण और दुनिया दिखावे के लिए लाखों पेड़ लगाए। आज उन पेड़ों की हलात देखकर आओं कितना विकसित हुए है वो? लगाने वाला भी नहीं बता पायेगा उसने कहां पेड़ लगाए थे? हम तो कहते है इंसान को वही काम करना चाहिए जो आपसे हो पाएये। वरना फालतु बैठकर मुक्त की रोटी रोडऩा ही बहेतर है आपके लिए। इससे इतना तो होगा जो मेहनत कर रहा है। उसकी तो जिन्दगी सलामत रहेगी।

देश के विकास के नाम पर जो लोग बेघर और बेरोजगार हो रहे है। उनका क्या होगा? कभी सोचा है अपने? जो इंसान पिछले 50 सालों से मेहनत कर के अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा है। अचानक उससे उसकी रोजी रोटी यूं छीन जाने से क्या करेगा वो? देश के लोगों को झुठे विकास के सपने दिखाने वाले कभी अपने सोने से बने महलों से बहार निकलकर तो देखों भूख प्यास क्या होती है? वरना कुदरत की मार बहुत बुरी होती है। कहीं ऐसा न हो मासूम बच्चों की आह से मरते वक्त दाना नसीब न हो आपको…।

सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश