Story : Green Glass BanglesStory

उसकी आंखों के सामने बचपन से अब तक का मंझर घुम रहा था। सिसकियों के साये में कब रूकसार के मुहं से हाँ निकल गई पता ही नहीं चला। चारों तरफ खुशियों का माहौल था। रूकसार अभी भी बेजान सी थी। इमरान की बहेन ने इमरान के छोटे बेटे को लाकर रूकसार की गोद में डालते हुए। कहा रूकसार अब इस बच्चे की सारी जिम्मेदारी तुम्हारी हैं। आज से तुम्हें इसे माँ का प्यार देकर पालना हैं…

रूकसार बेसुध पड़ी थी। उसकी खाला ने उसके सर पर हाथ फैर कर कहा होश में आओं बेटा। आखरी बार अपनी माँ का चहेरा देख लों। आगे ये चहेरा दोबारा देखने को नहीं मिलेगा। रूकसार ने बमुस्किल अपनी आंखे खोली और कफन में लिपटी अपनी माँ का चहेरा देखा। और फिर से बेहोश हो गई।

जब थोड़ी देर बाद होश आया तो देखा उसके माँ के जनाजे को ले जाने की तैयारी चल रही थी। रूकसार चिख-चिख कर रो रही थी। उसके कुछ समझ में नहीं आ रहा था वो क्या करें। कैसे अपनी प्यारी माँ को अपने से दूर जाने से रोके।
थोड़ी देर बाद रूकसार बेसुध एक कोने में बैठकर रो रही थी। उसके हाथ में अपनी माँ की हरी कांच की चुडिय़ां थी। जो उन्होंने इस बार ईद पर पहनी थी। रूकसार उन चुडिय़ों को हाथ में लेकर बस अपनी माँ को याद कर के रो रही थी।

इतने में उसकी खाला उसके पास आई और उसके छ: महीने के छोटे भाई को उसकी गोद में देकर कहा अपने आप को सभालों बेटा। अल्लाह की मर्जी थी बेटा तुम्हारी मां की इतनी ही जिन्दगी थी। अब तुम्हें अपने आप को सभालना होगा। अपने छोटे भाई की तरफ देखों। अब तुम्हें माँ बनकर इसका ख्याल रखना होगा।

दस साल की नन्नी बच्ची के लिए ये बहुत बड़ी बात थी। उसने हेरानी से अपने भाई की तरफ देखा जो इस बात से बेखबर के अब उसकी माँ इस दुनिया में नहीं है। वो उसके पास कभी लोटकर नहीं आ सकती हैं। अपनी बड़ी बहेन की गोद में आकर मुस्कुरा रहा था। अब रूकसार अपने हर दर्द को भुल गई थी। उसने अपने भाई को अपने सीने से लगा लिया।

जिन्दगी के साथ तड़पते हुए वक्त कब गुजरते जा रहा था। पता ही नहीं चला। रूकसार की माँ को खत्म हुए अभी एक साल भी नहीं हुआ था, रूकसार के अब्बू घर में नई दुल्हन ले आए। रूकसार पहले की तरह आज भी अपने भाई की जिम्मेदारी उठाने में लगी थी।

उसके अब्बू को तो उन दोनों भाई-बहेन से कोई मतलब नहीं था। वो जीए या मरे उनको कोई फ्रक नहीं पड़ता। रूकसार भी इसमें कुछ नहीं कर सकती थी। उसे आज भी वो दिन याद है जब अब्बू ने उसकी अम्मी को इस बेरहमी से मारा के उसकी अम्मी दोबारा नहीं उठ पाई।

अब तो नई अम्मी के घर एक बेटा भी हो गया था। रूकसार अपने छोटे भाई को देखकर बहुत खुश थी। लेकिन नई अम्मी ने उसे भाई को हाथ तक नहीं लगाने दिया। भाई के आने के बाद तो अब्बू ने उनके तरफ मुस्कुरा कर देखना भी छोड़ दिया।

जिन्दगी यूंही कशमाकस के साये में गुजरती जा रही थी। रूकसार ने अपनी अम्मी की हरे काँच की चुडिय़ों को एक संदूक में रख लिया था। जब भी उसे अम्मी की याद आती वो उस सन्दूक को खोलकर अपनी अम्मी की चुडिय़ों को अपने हाथ में लेकर खुब रोती। ये चुडिय़ां उसे जिन्दगी जीने की हिम्मत देती। वो सब्र करके सब कुछ सह जाती।

यूं दर्द के साये में जख्मों से लड़ते हुए वक्त कब गुजर गया पता ही नहीं चला। अब रूकसार अठारह साल की हो गई थी। उसकी नई मां अब उसके अब्बू से कहने लगी थी वो रूकसार की शादी कर दें। उसने रूकसार के लिए एक लडक़ा भी देख लिया था। जो उसके भाई का साला था। इमरान नाम था उसका।

रूकसार की नई मां चाहती थी रूकसार के अब्बू रूकसार की शादी इमरान से कर दें। लेकिन रूकसार के अब्बू इस शादी से खुश नहीं थे। क्योंकि इमरान पहले से शादी शुदा था उसके दो बेटे भी थे। बीबी का इन्तेकाल हो गया था।

लेकिन रूकसार की नई अम्मी के आगे उसके अब्बू ने कुछ नहीं कहा रूकसार की नई मां ने आगे बढक़र रूकसार का रिश्ता इमरान के साथ तै कर दिया। रूकसार बहुत रोई फरियाद की। लेकिन किसी पर उसका कोई असर नहीं हुआ।

आज फिर रूकसार अपने घर के एक कोने में बैजान सी बैठी थी। उसके सामने एक लाल जोड़ा और हरे काँच की चुडिय़ां रखी थी। वो बदहवास सी बस रोए जा रही थी।

उसकी सदाएं आंसूओं में कही सिमटती जा रही थी। अब वो लाल जोड़ा पहने हुए थी। हाथों में उसके हरे काँच की चुडिय़ां थी। काजी साहब उसका निकाह पढ़ा रहें थे। सिसकियों में सदाएं दबती जा रही थी। नई मां बाजू में बैठकर उसे चिमटियां तोडक़र हाँ कहने पर मजबूर कर रही थी।

उसकी आंखों के सामने बचपन से अब तक का मंझर घुम रहा था। सिसकियों के साये में कब रूकसार के मुहं से हाँ निकल गई पता ही नहीं चला। चारों तरफ खुशियों का माहौल था। रूकसार अभी भी बेजान सी थी। इमरान की बहेन ने इमरान के छोटे बेटे को लाकर रूकसार की गोद में डालते हुए। कहा रूकसार अब इस बच्चे की सारी जिम्मेदारी तुम्हारी हैं। आज से तुम्हें इसे माँ का प्यार देकर पालना हैं।

रूकसार की आंखों के सामने गुजरा हुआ वक्त एक नए रूप में था। लेकिन इस बार रूकसार की आंखों में आंसू थे। लेकिन मासूम बच्चा रूकसार की गोद में आकर मुस्कुरा रहा था। अब रूकसार की आंखों के सामने अपने भाई का चहेरा था। उसने मासूम बच्चे को अपने सिने से लगा लिया।

इमरान के घर वाले ये देखकर बहुत खुश थे। सब रूकसार की तारिफ कर रहें थे। अब रूकसार की विदाई का वक्त था। उसने अपने हाथों में वही संदूक लिए हुए थी जिसमें उसकी मां की चुडिय़ां थी। नई मां को लगा जरूर रूकसार सब से छुपा कर कुछ किमती चीज साथ ले जा रही हैं। और उसने बड़ी बहेरमी से संदूक को रूकसार के हाथ से छीन लिया।

लेकिन जब संदूक खोलकर देखा तो उसमें रूकसार की मां की हरे काँच की चुडिय़ां थी। ये देखकर रूकसार के अब्बू का दिल पिघल गया उन्होंने सबके सामने नई मां पर हाथ उठा दिया।

रूकसार ने अपने अब्बू का हाथ पकड़ लिया और उन्हें इसारे से माना किया रूकसार के अब्बू ने कहा मेरी बेटी एक नेक दिल इंसान हैं। तेरे जैसी जालिम नहीं हैं वो। तुने उसपर आज तक कितने जुल्म किये फिर भी। वो आज तेरे ही हक में सोच रही है। खुश रहों बेटा।

इस तरह रूकसार अपने घर से विदा होकर इमरान के घर आ गई। उसने इमरान के दोनों बच्चों को ऐसे सभाल लिया। कोई देखता तो कह नहीं सकता था। रूकसार उनकी असली माँ नहीं हैं। इमरान ये सब देखकर खुश था। वो एक बहुत ही नेक दिल इंसान था। इसलिए उसने भी हमेशा रूकसार के दर्द पर मरहम लगाने का काम किया। और कभी उसके आंखों में दोबारा आंसू नहीं आने दिये।

खुशियों के साये में दिन यूंही गुजरते जा रहे थे। आज इमरान रूकसार के लिए हरे काँच की चुडिय़ां लेकर आया था। रूकसार के दोनों मासूम बच्चे बढ़े प्यार से रूकसार के हाथों में चुडिय़ां पहना रहे थे। इमरान पास ही खड़ा ये देखकर मुस्कुरा रहा था। उसकी गोद में रूकसार और उसकी बेटी थी। जिसको वो प्यार से सीने से लगाएं हुए था।

सैयद शबाना अली