मिट गए वो परवाने

जिन्हें शम्मा की तलाश थी

गर्दिशो म खो गए

वो सितारे कहीं

जिन्हें बुंलदियों की आश थी!

अपने खून की बुंद-बुंद जो अपने देश पर निछावर कर गए। कैसे थे वो आजादी के परवाने जिन्होंने अपनी मातृ भूमि पर अपना सब कुछ निसार करने के बाद भी अपनी धरती माँ को आजाद कराने के लिए हसते हसते अपनी जिंदगी निसार कर दी उनके दिलो में आजादी को लेकर जो चाहत और जूनून था वो कुछ और था ? जो हम मे से किसी में नहीं आ सका!

वो आजादी की प्यास कुछ और थी जो बिना लम्बी जिंदगी के आजादी की सतरंगी चुनरी अपनी धरती माँ को हुडा कर खुद हसते हसते मौत क आगोश में सौ गई!

कैसे दिलदार थे वो जिन्हें मौत भी ना झुका साक उन्हें मारा गया हर तरहा से सताया गया अपने साथीओ को अपनी आँखो के सामने तड़प-तड़प के मरत हुए देख कर भी जिसके हौसले बुलंद हि रहे!

यही तो वो अपनी मातृ भूमि क असली सुपुत्र थे जिसके हौसले को वक्त की बड़ी स बड़ी आंधियों न मिटा सकि जिनके खून के एक कतरा की किमत सालों क फैर क बाद भी हम न चुका सकते हैं !

आज हमे सोचना चाहिए कहां वो थे और कहां हम है! उन्होंने अपनी जान की परवाह नही कर के अपनी धरती माँ को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराया! और हमने क्या किया हम अपने संस्कारो को भूल कर मानसिक रूप में उसी देश के गुलाम बन गये!

कभी सोचा है हमने कहा से चलें थे और कहां आ गए है हम? आज हमे सोचना चाहिए उन आँखों कै क्या ख्वाब थे जो अपनी आखरी सांस तक अपनी मातृ भूमि पर लोटा गई!

लेकिन हम न कभी इस सिद्दत से सोचने की कभी कोशिश नही की हम तो पैदा होते ही आजादी थाली में परोसे पकवान कि तरहा मिल गई! जिसकि किमत हम नहीं समझ सक

आज जरूरत है हम सोचना चाहिए उन आँखों कख्वाबों को हम कैसे पुरा कर सकते है!